For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - आज तू दर्द को ज़जा कहना । - पूनम शुक्ला

2122 1212 22
खत्म होती नहीं सजा कहना
बेरहम क्यों हुई रज़ा कहना

आशियाना सजा लिया हमने
तीरगी घेरती वज़ा कहना

आज फिर याद खूब आती है
मोतबर दर्द को मज़ा कहना

चाह कर भी सजा नहीं होगी
आज तू दर्द को ज़जा कहना

जान पर खेल कर कभी अपनी
जिन्दगी बाँटना क़जा़ कहना ।

दिन ब दिन बदलियाँ हटेंगी भी
जिन्दगी को न बेमज़ा कहना

कज़ा- ईश्वरीय आदेश
रज़ा - इच्छा
ज़जा - फल
मोतबर=जिसका एतबार किया हो,विश्वस्त

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 2:28pm

बधाई स्वीकारें, पूनम जी..

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 3:31am

बेहद सुंदर गज़ल कही है आदरणीया पूनम जी...

Comment by कल्पना रामानी on October 13, 2013 at 10:48pm

सुंदर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई पूनम जी

 

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:25pm

बढ़िया ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 13, 2013 at 3:30pm

दिन ब दिन बदलियाँ हटेंगी भी
जिन्दगी को न बेमज़ा कहना |

वाह बढ़िया ग़ज़ल पूनम जी  !

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 12, 2013 at 6:05pm

खूबसूरत ग़ज़ल...............

आज फिर याद खूब आती है
मोतबर दर्द को मज़ा कहना

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 1:38am

आज फिर याद खूब आती है
मोतबर दर्द को मज़ा कहना

वाह ...

सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें

सज़ा में "ज़े" होता है अर्थात इसमें भी नुक्ता लगेगा ...

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 5:12pm

आदरणीया पूनम जी ..इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Abhinav Arun on October 11, 2013 at 8:04am

अच्छी ग़ज़ल आ. पूनम जी हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 10, 2013 at 8:41pm
आदरणीया पूनम जी! सुन्दर गजल है। भाव और कथ्य दोनों ही उत्तम हैं।
आदरणीय अरुण भाई जी! मेरे मतानुसार काफिया सही है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service