For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुत शहर में बोलते इंसान भी तो हैं!//गज़ल//कल्पना रामानी

2122212221222

 

ज़िन्दगी जीने के कुछ, सामान भी तो हैं!

बुत शहर में बोलते, इंसान भी तो हैं!

 

भीड़ से माना कि घर, सिकुड़े बने पिंजड़े,

साथ में फैले हुए, उद्यान भी तो हैं!

 

और अधिक के लोभ में, नाता घरों से तोड़,

मूढ़ गाँवों ने किए, प्रस्थान भी तो हैं।

 

गाँव ही आकर अकारण हैं मचाते भीड़

यूँ शहर में बढ़ गए व्यवधान भी तो हैं!

 

क्यों नहीं हक माँगते, शासन से आगे बढ़?

जानकर ये बन रहे, नादान भी तो हैं!

 

हल चलाते हाथ कोमल हो नहीं सकते,

श्रम से होते रास्ते, आसान भी तो हैं!

 

माँ-पिता क्यों दोष देते, पुत्र को ही आज?

मन में उनके कुछ दबे, अरमान भी तो हैं।

 

दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?

ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं!  

 

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

 

Views: 932

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 8:45pm

खूबसूरत ग़ज़ल............हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:12pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 1:54am

हल चलाते हाथ कोमल हो नहीं सकते,

श्रम से होते रास्ते, आसान भी तो हैं!

 

माँ-पिता क्यों दोष देते, पुत्र को ही आज?

मन में उनके कुछ दबे, अरमान भी तो हैं।

 

दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?

ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं! 

आदरणीया बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है ये तीन शेर विशेष पसंद आये
बधाई स्वीकारें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 4:49pm

आदरणीया बेहतरीन अशारों से सजी शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by Abhinav Arun on October 11, 2013 at 1:08pm

हल चलाते हाथ कोमल हो नहीं सकते,

श्रम से होते रास्ते, आसान भी तो हैं!

 

माँ-पिता क्यों दोष देते, पुत्र को ही आज?

मन में उनके कुछ दबे, अरमान भी तो हैं।

 

दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?

ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं!  ............सुन्दर अश'आरो से सजी ग़ज़ल .आ.कल्पना जी हार्दिक बधाई आपको !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:27pm

आदरणीया रामानी जी, वाह..! बेहतरीन गजल हुर्इ है। आप तहेदिल से बधार्इ स्वीकारें।   सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2013 at 7:24pm

जी आदरणीय कल्पना जी यही मैं भी सोचती हूँ जब हम देवनागरी में लिखते हैं और अधिक हिंदी शब्दों को लेते हैं तो हिंदी के अनुसार शहर लेना चाहिए मैंने भी कई बड़े ग़ज़ल कारों को लिखते देखा है किन्तु ये सिर्फ हमारी राय है विद्वद जन क्या कहते हैं नियम क्या कहते हैं वो देखना है ,हाँ यदि हम उर्दू के ज्यादा शब्दों को ले रहे हैं तो शह्र  लिखना चाहिए 

Comment by वेदिका on October 10, 2013 at 6:52pm

दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?

ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं! ....सकारात्मक गज़ल 

बधाई आ0 कल्पना दीदी!

Comment by कल्पना रामानी on October 10, 2013 at 6:47pm

आदरणीय अरुण अनंत जी, सुशील जोशी जी, आदरणीया राजेशकुमारी जी, अन्नपूर्ण जी, वंदना जी, प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणियों के लिए आप सबका हार्दिक धन्यवाद। शहर की मात्राओं के बारे में यहीं पर पूर्व में चर्चा हो चुकी है। चूंकि मैं उर्दू शब्दों की जानकारी नहीं रखती, इसलिए किसी भी शब्द की मात्राओं को हिन्दी उच्चारण के अनुसार ही लेती हूँ। हिन्दी में तीन वर्णों के शब्दों में अंतिम शब्द का उच्चारण प्रायः आधे शब्द जैसा ही होता है। कमल, गज़ल, सरल आदि 1+2 के अनुसार ही उच्चरित होते हैं, अतः मेरे विचार से हमें हिन्दी में शब्दों का सहज रूप ही देखना चाहिये। दुष्यंत जैसे प्रसिद्ध गजलकार ने भी शहर को 1+2 में ही प्रयोग किया है। इसलिए इस तरह के शब्दों को उसी नज़र से देखना चाहिए। पहले भी मैं इसी तरह के प्रयोग कर चुकी हूँ। अधिक तो आप सब स्वयं समझदार हैं।

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 4:53pm

आदरणीया वाह बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हरेक अशआर हृदयस्पर्शी बन पड़ा है वर्तमान परिस्थिति को सुन्दरता से परिभाषित किया है, मैं भी आदरणीया राजेश माँ जी से सहमत हूँ शहर की मात्रा 12 नहीं अपितु २१ होती है. बहरहाल इस सुन्दर ग़ज़ल हेतु दिली दाद कुबूल फरमाएं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service