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ग़ज़ल - दोपहरी में छाँव लिखूं

ग़ज़ल –


2222  2112

दोपहरी में छाँव लिखूं ,
जब भी अपना गाँव लिखूं |

जन्नत की जब बात चले ,
अपनी माँ के पांव लिखूं |

पांचाली की पीर बढ़ी ,
दुर्योधन के दांव लिखूं |

दिल दिल्ली से टूटा है,
खुल के अब डुमरांव लिखूं |

सड़कों पर विश्राम नहीं ,
पगडण्डी की ठांव लिखूं |

 

 

* सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 6:49am

आदरणीय श्री अरुन शर्मा 'अनन्त' जी बहुत शुक्रिया भाई जी स्नेह बनाये रखें !!

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 6:48am

आदरणीया महिमा श्री जी आपके अनुमोदन से हार्दिक ख़ुशी हुई , दिली शुक्रिया आपको !!

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 6:47am

आदरणीय श्री राणा जी , आप जैसे सुधी - विद्वान् - तेवरदार शायर ने टिप्पणी की मन प्रफुल्लित है :-) हार्दिक आभार आपका !! स्नेह और ज्ञान - दान मिलता रहे यही कामना है !!

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 6:44am

 डॉ. अनुराग सैनी जी आपका हार्दिक आभार आदरणीय !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 1:19am

आपको पढ़ने सुनने में अमृत-पान का सुख मिलता है. आदरणीय अभिनव जी, हम तो बस तृप्त हो गये भाई.............

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 10:28pm

लाजवाब लाजवाब ग़ज़ल वाह क्या कहने अति सुन्दर बहुत ही बढ़िया आदरणीय दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by MAHIMA SHREE on October 6, 2013 at 6:19pm

जन्नत की जब बात चले ,
अपनी माँ के पांव लिखूं .. क्या बात है ... जुबान पे चढ़ गया ......

 

सड़कों पर विश्राम नहीं ,
पगडण्डी की ठांव लिखूं |....वाह बहुत ही सुंदर .. शानदार . गज़ल आदरणीय अभिनव जी ..हार्दिक बधाई स्वीकार करें ....

 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 6, 2013 at 4:33pm

दिल दिल्ली से टूटा है,
खुल के अब डुमरांव लिखूं |

..क्या बात है........लाजवाब शेर

सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय| डुमराव का बहुत सुन्दर प्रयोग स्वर्गीय कैलाश गौतम जी ने भी  अपने एक गीत में भी किया है|

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 3:47pm

आहा मजा आ गया क्या खूब कहा  है !

हार्दिक बधाई !

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 3:02pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्री गिरिराज जी अनुमोदन प्राप्त कर ग़ज़ल ..और भी खिल उठी है :-) 

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