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लघुकथा : कन्या पूजन (गणेश जी बागी)

राधना तीन बेटों की माँ बन गयी थी, लेकिन बेटी की कमी हमेशा उसे अन्दर से कचोटती रहती। सासू माँ ने समझाया भी कि बहूँ एक बार और देख लों शायद माता रानी सुन लें, पर वह कोई चांस नहीं लेना चाहती थी, बड़ी ननद ने तो यहाँ तक कहा कि मेडिकल साइंस आज बहुत आगे है - चेक करा लेना और यदि बेटी नहीं हुई तो…… लेकिन आराधना ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वो ऐसा घृणित पाप नहीं कर सकती । 

नवरात्रि का पहला दिन था सुबह सुबह आराधना पूजा की डलिया लिए मंदिर जा रही थी, तभी मंदिर के बगल में भीड़ देख ठिठक गई, किसी ने नवजात कन्या को उसके  हाल पर छोड़ दिया था।  भीड़ में से कोई भी बच्ची को अपनाने हेतु आगे नहीं आ रहा था, आराधना को जैसे माता रानी ने आशीर्वाद दे दिया था, वह घरवालों की सर्वसम्मति से बच्ची को घर ले आयी । इस बात की सूचना आराधना के पति ने अपने क्षेत्र के थाने में भी दे दी ताकि किसी क़ानूनी पेचीदगी मे न पड़ना पड़े | 

खुशी खुशी पाँच छ: दिन ही बीते होंगे कि थाने का दारोगा घर आ धमका और रौब झाड़ते हुए पचास हज़ार की माँग की, और मांग पूरी न होने की सूरत में बच्ची को थाने पहुँचा देने का हुक्म दे गया | आराधना और उसके परिवार की मिन्नतों का दारोगा पर कोई असर न हुआ, अंतत: मजबूरन बच्ची को थाना पहुँचाना पड़ा |

आज नवरात्रि अष्टमी का दिन है, सेठ घनश्याम दास और उसकी पत्नी नई बच्ची के घर आने के उपलक्ष्य मे कन्या पूजन की तैयारी मे ज़ोर शोर से लगे हैं |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2013 at 11:15pm

आदरणीया राजेश जी, आपकी पाठक धर्मिता वन्दनीय है, आप जिस तरह से तथ्यों को पकड़ती हैं वह सराहनीय है, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 12:35pm

आदरणीय भ्राताश्री वाह अत्यंत सुन्दर लघुकथा बहुत ही बारीकी से लिखी है आपने एक ही लघुकथा में कई कई सन्देश समाहित है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by vijay nikore on October 6, 2013 at 2:57am

लघुकथा बहुत ही अच्छी लगी... बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on October 6, 2013 at 1:21am

स्तम्भित कर देने वाली लघुकथा जो पाठक को झिंझोड़ कर रख देता है.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 5, 2013 at 11:40pm

सुंदर सार्थक लघुकथा, बधाई स्वीकारें आदरणीय गणेश जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 10:52pm

सुन्दर और सार्थक कहानी आदरणीय बागी जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2013 at 10:51pm

वाह ! बहुत सुन्दर !!

Comment by annapurna bajpai on October 5, 2013 at 10:36pm

आदरणीय बागी जी बहुत ही उत्कृष्ट लघु कथा , दोहरे मान दंड को उजागर करती आपकी कथा बहुत बधाई आपको । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 5, 2013 at 9:57pm

आदरणीय गणेश जी,

आपकी इस लघुकथा की सबसे बड़ी खूबी इसमें उठाये गए सामाजिक मुद्दे हैं.. एक दो नहीं पूरे चार मुद्दों को समाहित कर लिया आपने, जिन्हें देख सुखद आश्चर्य हो रहा है.

*बेटी की चाह..पर एक शिक्षित महिला (ननद) की सलाह..  लिंग निर्धारण और भ्रूण ह्त्या के लिए प्रेरित करना 

*नवजात कन्या का स्वजनों द्वारा बेरहमी से कचरा जान फेंका जाना 

*पुलिस का लालच, पैसों की मांग 

*गणमान्य सेठजी द्वारा नवजात को खरीद लिया जाना, इस ट्विस्ट नें एक ज़बरदस्त आयाम दिया है इस लघुकथा को.

इन चारों पहलुओं को जिस ख़ूबसूरती से गूंथा है आपने इस लघुकथा के ताने बाने में... उस पर आपको हार्दिक बधाई 

सादर.

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:45pm

सर बधाई आपको इस उत्कृष्ट लघु कथा पर , हमारे समाज के कई रूपों पर एक साथ प्रकाश डाला है ! 

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