For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : कन्या पूजन (गणेश जी बागी)

राधना तीन बेटों की माँ बन गयी थी, लेकिन बेटी की कमी हमेशा उसे अन्दर से कचोटती रहती। सासू माँ ने समझाया भी कि बहूँ एक बार और देख लों शायद माता रानी सुन लें, पर वह कोई चांस नहीं लेना चाहती थी, बड़ी ननद ने तो यहाँ तक कहा कि मेडिकल साइंस आज बहुत आगे है - चेक करा लेना और यदि बेटी नहीं हुई तो…… लेकिन आराधना ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वो ऐसा घृणित पाप नहीं कर सकती । 

नवरात्रि का पहला दिन था सुबह सुबह आराधना पूजा की डलिया लिए मंदिर जा रही थी, तभी मंदिर के बगल में भीड़ देख ठिठक गई, किसी ने नवजात कन्या को उसके  हाल पर छोड़ दिया था।  भीड़ में से कोई भी बच्ची को अपनाने हेतु आगे नहीं आ रहा था, आराधना को जैसे माता रानी ने आशीर्वाद दे दिया था, वह घरवालों की सर्वसम्मति से बच्ची को घर ले आयी । इस बात की सूचना आराधना के पति ने अपने क्षेत्र के थाने में भी दे दी ताकि किसी क़ानूनी पेचीदगी मे न पड़ना पड़े | 

खुशी खुशी पाँच छ: दिन ही बीते होंगे कि थाने का दारोगा घर आ धमका और रौब झाड़ते हुए पचास हज़ार की माँग की, और मांग पूरी न होने की सूरत में बच्ची को थाने पहुँचा देने का हुक्म दे गया | आराधना और उसके परिवार की मिन्नतों का दारोगा पर कोई असर न हुआ, अंतत: मजबूरन बच्ची को थाना पहुँचाना पड़ा |

आज नवरात्रि अष्टमी का दिन है, सेठ घनश्याम दास और उसकी पत्नी नई बच्ची के घर आने के उपलक्ष्य मे कन्या पूजन की तैयारी मे ज़ोर शोर से लगे हैं |

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : गिरगिट

Views: 1393

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on October 23, 2015 at 5:30pm

बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको

.सादर ..........


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 21, 2015 at 11:30am

आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 21, 2015 at 11:29am

लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और बहुमूल्य टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी.

Comment by Omprakash Kshatriya on October 19, 2015 at 5:09pm

आदरणीय  बागी जी आप की कन्या पूजन एक सच्चाई को  बयान करती सुन्दर रचना है. बधाई आप को .

Comment by Archana Tripathi on October 19, 2015 at 4:41pm
सशक्त लघुकथा ,आश्चर्य होता हैं की हम हर जगह व्यापारी क्यों बन जाते हैं ?आदरणीय बागी जी हार्दिक बधाई आपको ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2013 at 12:43pm

आदरणीया किरण आर्या जी, आपकी प्रतिक्रिया धरोहर सदृश है, आपकी टिप्पणी में निहित उदगार निश्चित ही मेरे लेखन में सहायक सिद्ध होगा, बहुत बहुत आभार । 

Comment by Kiran Arya on October 14, 2013 at 12:26pm

नमस्कार सर आपकी लघुकथाए जब समय मिलता है पढ़ती हूँ ........हर भाव निशब्द कर जाता है ....एक ही साँस में पढ़ जाती हूँ .....एक और शसक्त लघुकथा के लिए हार्दिक शुभकामनाये ......आज का यथार्थ एक कटु सत्य इतनी सहजता से दर्शाया आपने ......रिश्ते प्यार नहीं व्यापार हो गए और सौदागर वहीँ जिसके हाथ में पूंजी ...........शुभं


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2013 at 4:33pm

आदरणीय शन्नो दीदी, आपकी प्रतीक्षा हमेशा रहती है, आपकी यह टिप्पणी एकदम इमानदाराना है,कई बार अंत क्या होगा जानने के लिए हम लोग उत्सुक हो जाते हैं, यह आपने हर पाठक के दिल की बात कह दी है, लघु कथा में निहित कथ्य हुबहू आप तक पहुँच सका यह तोष का कारण है, बहुत बहुत आभार दी । 

Comment by Shanno Aggarwal on October 13, 2013 at 4:02pm

गणेश, तुम्हारी हर लघु कथा के लिये बहुत बधाई l इन रोचक लघु कथाओं का आनंद बहुत दिनों से उठाती रही हूँ l लेकिन कमेन्ट देने में लेट लतीफ़ होती रही इसके लिये माफ़ी चाहती हूँ l इन कथाओं को पढ़ना शुरू करते ही एक बेचैनी महसूस होने लगती है कि अंत में क्या होगा l पाठक होने की हैसियत से मन लटकाव (असमंजस) में पड़ जाता है कि कहानी के छोर में क्या होगा l कभी-कभी पढ़ने की शुरुआत करते ही बेईमानी कर जाती हूँ और बीच का बाद में पढ़ती हूँ पर अंत का पहले पढ़ जाती हूँ :)

ये कथा बड़ी मर्मस्पर्शी है l जीवन की कैसी बिडम्बना है कि एक बच्ची को जन्म देने वाले ने भार समझ कर या परिस्थितियों से मजबूर होकर सड़क पर छोड़ दिया l और दूसरी तरफ एक कन्या के लिये तरसने वाले परिवार ने उसे ईश्वर का वरदान समझ कर उसे अपना लिया l जिस बच्ची को कूड़े की तरह फेंका गया उसे किसी ने सड़क से अपने जीवन की ज्योति समझ कर उठा लिया l किन्तु अनुशासन भी कितना मौका परस्त है.....उसने बच्ची का व्यापार कर दिया l  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2013 at 11:46am

लघुकथा पसंद करने हेतु आभार आदरणीया सरिता भाटिया जी । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service