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ग़ज़ल (१) : आशिक़ी मौत से बदतर है !

आज फिर याद कई, ज़ख्म पुराने आये

धड़कने बंद करो, शोर मचाने आये//१

.

लेके मरहम न सही, हाथ में गर खंजर हो  

हक़ उसी को है, मेरा दर्द बढ़ाने आये//२

.

इश्क़ में आह की दौलत के, बदौलत हम हैं   

कोई तो हो जो मेरा, ज़ख्म चुराने आये//३ 

.

रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी  दे दो 

अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४

.

कम चरागें न जलाई थी, तेरी यादों की  

जल रहा दिल है, उसे कोई बुझाने आये//५

.

आशिक़ी मौत से बदतर है, बता दूं न कहीं 

सोचकर लोग यही, मुझको मनाने आये//६

.

दर्द हो, ज़ख्म हो, आँसू हो मेरे दामन में

कोई ऐसे भी कभी, मुझको सताने आये//७ 

.

खौफ़ है, जुर्म है, ‘इंसान’ बने रहना भी

है जो क़ुव्वत तो मुझे, ज़िद से हटाने आये//८

.

‘नाथ’ कहता है भला, कौन बचा है इससे

मौत आनी है, किसी भी वो बहाने आये//९

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

वज्न : आज-21/फिर-2/याद-21/कई-12/ज़ख्म-21/पुराने-122/आये-22 [2122-1122-1122-22]

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on September 22, 2013 at 8:35pm

श्री रामनाथ 'शोधार्थी' साहब :
प्रिय भ्राताश्री ... स्वागत है आपका..! लाजवाब ग़ज़ल ...उम्दा अशआर ...वाह ! आपकी प्रस्तुति ने शमां बांध दिया !...नमन !

खौफ़ है, जुर्म है, ‘इंसान’ बने रहना भी

है जो क़ुव्वत तो मुझे, ज़िद से हटाने आये.....वल्लाह ..:)

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 22, 2013 at 5:58pm

रामनाथ भाई अच्छी गज़ल की बधाई ।

आशिक़ी मौत से बदतर है, बता दूं ना मैं  // " आशिक़ी मौत से बदतर है, बता दूं न कहीं "

सोचकर लोग यही, मुझको मनाने आये//६

Comment by Abhinav Arun on September 22, 2013 at 10:25am

कम चरागें न जलाई थी, तेरी यादों की  

जल रहा दिल है, उसे कोई बुझाने आये//५

.

आशिक़ी मौत से बदतर है, बता दूं ना मैं

सोचकर लोग यही, मुझको मनाने आये//६

.

दर्द हो, ज़ख्म हो, आँसू हो मेरे दामन में

कोई ऐसे भी कभी, मुझको सताने आये//७ 

       शानदार अश'आर हुए हैं रामनाथ जी लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 22, 2013 at 7:17am

आदरनीय रामनाथ भाई , लाजवाब गज़ल कही , आपको हार्दिक बधाई !!

खौफ़ है, जुर्म है, ‘इंसान’ बने रहना भी

है जो क़ुव्वत तो मुझे, ज़िद से हटाने आये//८ ---------- वाह वा !! इस शे र  के लिये विशेष दाद कुबूल करें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 21, 2013 at 11:39pm

दर्द हो, ज़ख्म हो, आँसू हो मेरे दामन में

कोई ऐसे भी कभी, मुझको सताने आये//७ .......यह शेर बहुत पसंद आया

बेहद शानदार गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय रामनाथ जी

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2013 at 11:14pm

दर्द हो, ज़ख्म हो, आँसू हो मेरे दामन में

कोई ऐसे भी कभी, मुझको सताने आये//७ 

.

खौफ़ है, जुर्म है, ‘इंसान’ बने रहना भी

है जो क़ुव्वत तो मुझे, ज़िद से हटाने आये//८

वाह भाई इन् अशआर के क्या कहने ....
सशक्त ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 21, 2013 at 7:50pm

रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी  दे दो 

अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४

खौफ़ है, जुर्म है, ‘इंसान’ बने रहना भी

है जो क़ुव्वत तो मुझे, ज़िद से हटाने आये//८

प्रिय रामनाथ  जी ...बहुत सुन्दर भाव लिए गजल ..अच्छे अशआर ....भ्रमर ५ 

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