For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल
वजन : 2212 2212

 

बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। 
 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 
तो शेर कहना आ गया ।2।

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : डर

Views: 1260

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 15, 2013 at 6:17am

हम सब समवेत सीख रहे हैं बागी जी ..आभार और स्नेह का शुक्रिया ..जय ओ बी ओ !

Comment by वीनस केसरी on September 15, 2013 at 1:23am

कठिन और कम लयात्मक बहर के साथ बड़ी रदीफ़ को चुनना एक ऐसा खतरनाक काम है जिसे इस ग़ज़ल में अंजाम तक पहुँचाया गया है
इसके लिए बधाई

इता दोष के प्रति आग्रही होना ग़ज़ल को दोष मुक्त करने के लिए बढ़ाया गया पहला कदम होगा फिर आगे कहन को लेकर बातें सामने आयेंगी
ग़ज़ल में गज़लियत होना भी अनिवार्य है
सपाटबयानी आज ग़ज़ल के लिए बड़ा खतरा बन कर उभरी है इससे भी हमें ही लड़ना है

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 14, 2013 at 11:08pm

आदरणीय भ्राताश्री छोटी बहर में बहार ला दी आपने क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने हरेक शेर लाजवाब है दिल से ढेरों बधाई भाई जी और अंतिम शेर पर विशेष तौर से बधाई स्वीकारें इस शेर में आपने अपने मेरे और तमाम पिताओं के ह्रदय की भावना को व्यक्त कर दिया है.

बकवास करना आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। बिलकुल सही भाई जी वाह

 

धड़कन जो पढ़ना आ गया,
तो शेर कहना आ गया ।2। क्या कहने आशिकाना

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3। आय हाय

 

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4। सटीक सत्य

 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5। दिल की बात कह दिया भाई जी ढेरों बधाइयाँ ढेरों बधाइयाँ

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 11:00pm

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।..................... आ0 बागी जी बहुत ही बढ़िया गजल कही, सामयिक भाव । बहुत बधाई आपको ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2013 at 5:35pm

सहज सरल और उम्दा भाव गजल के लिए बधाई आदरणीय श्री गणेशजी बागी जी 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 14, 2013 at 4:41pm

छोटी बहर पर अच्छी गज़ल, आदरणीय बागी जी ! ढेरो दाद कबूलें !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:25pm

आदरणीय बागी जी

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।,.हर शेर का आनंद उठाया .. लाजबाब शेरो में ये शेर और अंतिम शेर बेहद पसंद आये //सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Shyam Narain Verma on September 14, 2013 at 1:03pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by Parveen Malik on September 14, 2013 at 12:04pm
बेहद खूबसूरत आदरणीय बागी जी !
दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया....
जायज है जमाने की चाल देखकर डरना !
Comment by Sarita Bhatia on September 14, 2013 at 11:55am

वाह वाह लाजवाब 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।

बहुत बहुत बधाई गणेश भाई जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service