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एक शाम

उदास सी थी

निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित

निहारती सी

दूर तलक शून्य मे।  

कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन

अचेतन जड़ हो गए जो

पुकारती सी

दूर तलक शून्य मे ।

नेपथ्य से कुछ सरसराहट

वैचारिक या मौन

विजयी पर प्रसन्न नहीं

श्रोता सी

दूर तलक शून्य मे ।

अन्तर्मन के क्रंदन को

छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो

अलौकिक आभा थी

दूर तलक शून्य मे ............... ।  

 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 1:29pm
आदरणीय बागी जी आपका हार्दिक आभार , आपकी टिप्पणी ने उत्साह वर्धन किया है ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:20pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी इस सुंदर रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 12:05am

नेपथ्य से कुछ सरसराहट

वैचारिक या मौन

विजयी पर प्रसन्न नहीं

श्रोता सी

दूर तलक शून्य मे ।

आदरणीया अन्नपूर्णा जी ...सुन्दर शब्द समन्वय गूढ़ अर्थ ..अच्छी रचना
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2013 at 11:44pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया अन्नपूर्णा जी बधाई स्वीकारें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 13, 2013 at 11:30pm

अति सुंदर व् प्रभावशाली रचना,  बहुत बहुत बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2013 at 10:37pm

आहा, अतुकांत शैली में लिखी यह रचना अत्यंत ही खुबसूरत लगी, भावों का अच्छा सम्प्रेषण हुआ है, बधाई प्रेषित करता हूँ । 

कृपया ध्यान दे...

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