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ग़ज़ल - इल्म की रोशनी नहीं होती !

ग़ज़ल –

२१२२   १२१२   २२

इल्म की रोशनी नहीं होती ,

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती |

 

एक कोना दिया है बच्चों ने ,

और कुछ बेबसी नहीं होती |

 

रंग आये कि सेवई आये ,

तनहा कोई ख़ुशी नहीं होती |

 

दिल के टूटे से शोर होता है ,

ख़ामुशी ख़ामुशी नहीं होती |

 

सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,

दिल में भी सादगी नहीं होती |

 

माँ के आँचल से दूर हैं बच्चे ,

बाप से बंदगी नहीं होती |

 

जी हुज़ूरी करूँ सलामी दूं ,

मुझसे ये नौकरी नहीं होती |

 

झूठ छाया है हर रिसाले में ,

सच की सुर्खी कभी नहीं होती |

 

*दौरे हाज़िर भी एक बवंडर है ,

आँधियों की कमी नहीं होती |

*संशोधित 

(मौलिक और अप्रकाशित)

        - अभिनव अरुण 

          [१२०९२०१३]

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 11:50am

आदरणीय बृजेश भाई , खामुशी भी सही है , उर्दू शब्द कोश मे खामुशी भी है , जिसका अर्थ खामोशी ही है !!

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 11:42am

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
एक जिज्ञासा है कि सही शब्द 'खामोशी' है। मात्रा गणना के हिसाब से इसे 'खामुशी' लिखना सही है?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 13, 2013 at 10:33am

बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने वाह

//झूठ छाया है हर रिसाले में ,

सच की सुर्खी कभी नहीं होती// बहुत खूब बेहतरीन सर बधाई हो,

 

एक बवंडर है दौरे हाज़िर भी ,

आँधियों की कमी नहीं होती // वाह क्या बात है 

शेर बहुत अच्छा है लेकिन तकाबुले रदीफ़ है शायद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 10:19am

आदरणीय अरुण भाई , लाजवाब गज़ल कही !! बधाई !!

जी हुज़ूरी करूँ सलामी दूं ,

मुझसे ये नौकरी नहीं होती |

 

झूठ छाया है हर रिसाले में ,

सच की सुर्खी कभी नहीं होती |

 

एक बवंडर है दौरे हाज़िर भी ,

आँधियों की कमी नहीं होती | --------------- इन शे रो के लिये दाद कुबूल करें !!

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