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शायद उनको प्यार आ जाए

पहरों उन के साथ बिताये ,
दिल की बात नहीं कह पाए ।

तेरी खिड़की तनिक खुली है ,
शायद धूप निकल ही आये ।

इसी आस पर जीते हैं हम ,
शायद उनको प्यार आ जाए ।

दिल की बात कहाँ तक माने ,
दिल तो हर शै पर आ जाए ।

आज खुले रखो दरवाजे,
आज कोई शायद आ जाए ।

उन के अफ़साने में सुनना ,
शायद मेरा नाम आ जाए ।।

मुझको खंजर मारने वाले ,
तुझको मेरी उम्र लग जाए ।

आते जाते मिल जाते हो ,
इक अफसाना बन ना जाये ।

तूफां  हारे कभी , और कभी,
पुरवा मुझे      उड़ा ले जाए।

'शेखर' को सुलझाने वाले ,
तू उसमे खुद उलझ ना जाए ।

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'

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Comment

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Comment by नयना(आरती)कानिटकर on September 7, 2013 at 12:51pm

सुन्दर रचना ... बधाई

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 9:36am

बहुत बहुत सुन्दर रचना ... बधाई स्वीकारें

Comment by Abhinav Arun on September 7, 2013 at 3:42am

आज खुले रखो दरवाजे,
 आज कोई शायद आ जाए ।.....बेहतरीन कलाम श्री अरविन्द जी ..बहुत बधाई !1

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