For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने को आफ़ताब समझने लगे हैं आप

मुझको अब एक ख़्वाब समझने लगे हैं आप।

सूखा हुआ गुलाब समझने लगे हैं आप॥

 

यूं लखनऊ में रहके गुजारे जो चार दिन,

अपने को अब नवाब समझने लगे हैं आप॥

 

तस्वीर पर ज़रा सी जो तारीफ़ हो गयी,

अपने को माहताब समझने लगे हैं आप॥

 

दो चार जुगनुओं से ज़रा दोस्ती हुई,

अपने को आफ़ताब समझने लगे हैं आप॥

 

घर से निकल के आप जो सड़कों पे आ गए,

उसको ही इंकलाब समझने लगे हैं आप॥

 

दो चार ज़िंदगी में ग़लत लोग क्या मिले,

दुनिया को ही ख़राब समझने लगे हैं आप॥

 

आँखों में मेरी अब भी तो परदा हया का है,

क्यूँ हमको बेनक़ाब समझने लगे हैं आप॥

 

वो लोग आजकल हैं जो ख़बरों की सुर्खियां,

उनको ही कामयाब समझने लगे हैं आप॥

 

थोड़ी सी मिल गयी है जो “सूरज” की रौशनी,

अपने को बारयाब समझने लगे हैं आप॥

 

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

 

आफ़ताब= सूरज, माहताब=चाँद, इंकलाब= क्रांति, बारयाब= पहुंचा हुआ

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 6, 2013 at 2:50pm

बहुत सुन्दर गज़ल आ० डॉ० सूर्या बाली जी 

बहुत समय बाद आपकी कोई गज़ल पड़ने को मिली... 

सादर धन्यवाद 

Comment by ARVIND BHATNAGAR on September 5, 2013 at 2:09pm
Wah janab..........

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 7:19am

आदरनीय सूर्या बाली जी , पूरी गज़ल बहुत सुन्दर !! एक एक शे र सुन्दर !! लाजवाब !! हार्दिक बधाई !!

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 6:25am

वाह! बहुत खूब! लाजवाब! आपको हार्दिक आभार!
वैसे मैं लखनऊ में रहता हूं लेकिन खुद को नवाब तो नहीं समझता। :)))))))))))))))))))))

Comment by Abhinav Arun on September 5, 2013 at 5:51am

लखनऊ में रह के .. घर से निकलके .. ख़बरों की सुर्ख़ियों वाले शेर वाह लाजवाब डॉ साहिब ...पूरी ग़ज़ल जिंदाबाद हुई है !! आपके भाव और ख़याल के क्या कहने और क्या सुन्दरता से शिल्प में पिरोया है ...बहुत बहुत बधाई !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 3:20am

दो चार ज़िंदगी में ग़लत लोग क्या मिले,

दुनिया को ही ख़राब समझने लगे हैं आप॥.........वाह! क्या कहने, बहुत खूब

वो लोग आजकल हैं जो ख़बरों की सुर्खियां,

उनको ही कामयाब समझने लगे हैं आप॥.........यह शेर बहुत पसंद आया

उम्दा गजल पर दाद कुबूल कीजिये आदरणीय डा. सूर्या जी

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 11:05pm

अति सुंदर आशआर , हर एक अपने आप मे कुछ न कुछ कहता हुआ । बहुत बधाई आपको इस सुंदर गज़ल रचना के लिए आदरणीय सूर्य बाली जी । 

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 10:10pm

वाह .. बहुत खूब... हार्दिक बधाई क़ुबूल करें आदरणीय

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 4, 2013 at 9:56pm

 सुरज भाई, राधे- राधे। हार्दिक बधाई इतनी सुंदर गजल और सटीक शब्दों के लिए॥ 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 8:44pm

तस्वीर पर ज़रा सी जो तारीफ़ हो गयी,
अपने को माहताब समझने लगे हैं आप॥

दो चार जुगनुओं से ज़रा दोस्ती हुई,
अपने को आफ़ताब समझने लगे हैं आप॥

दो चार ज़िंदगी में ग़लत लोग क्या मिले,
दुनिया को ही ख़राब समझने लगे हैं आप॥///वाह आदरणीय बहुत खूब

वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही ज़ोरदार है लेकिन ये अशआर कुछ ज्यादा ही पसंद आये //हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सुर्यबाली जी //सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service