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तान्या : यूँ मिलना तुम्हारा

एक 

तुम
मुझे ऐसे मिले
जैसे कि मंदिर में किसी
देवता के आगे
फैली
अंजलि में
फूल
देव मस्तक का
आ कर के गिरे /
या किसी प्यासे पपीहे को
मिले
एक बूँद पानी ।

प्यार सी
नजरो को छू कर
तुम खिले ऐसे
कि जैसे
ऋतु बसंत में
किसी कम्पित डाली पर
सोई कली
मंद , शीतल पवन का
स्पर्श पा कर के खिले /
या खिले कवि ह्रदय कोई
देख कर वर्षा सुहानी ।

दो घडी को
साथ चल कर
तुम छुपे ऐसे
कि जैसे
श्याम घन के बीच से
चपला अचानक
दो घडी को झांक
जा वापस छुपे /
या कोई पल बीतता सा
क्षण में
बन जाये कहानी ।

दो

कभी का वो क्षण
अनकहा
कहा था /कान में चुपके से
' प्यार के माने क्या?'
कि सपने हज़ार बुने /
कि हाथ बढाया
अभी आसमान छू लूं / 
ये धरती, हवाएं
ये बारिश का पानी
मेरे थे /उसी क्षण
सभी /
वो क्षण
डायरी का एक पृष्ठ बन कर
रह गया ।

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 3, 2013 at 9:05am

आ0 अरविन्द भाई जी,  सादर प्रणाम!  अतिसुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें,  सादर,

Comment by aman kumar on September 3, 2013 at 9:03am

वो क्षण 
डायरी का एक पृष्ठ बन कर 
रह गया ।

यादे .........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 3, 2013 at 8:03am

अरविन्द भाई , अनुपम रचना , अनुपम अभिव्यक्ति , वाह वाह !! क्या कहने !! बधाई !!

Comment by Abhinav Arun on September 3, 2013 at 7:40am

आपकी कविता अपनी विशिष्ट छाप बता देती है .... इन  स्नेहिल अनुभूतियों की सुंदर सशक्त भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आ . शेखर जी !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 3, 2013 at 12:12am

वाह! बेहद सुंदर शब्दों से पिरोयी रचना, हार्दिक बधाई आदरणीय अरविन्द जी

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