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!!! पिया के घर चली रजनी !!!
गजल बह्र- 1 2 2 2, 1 2 2 2

सुहानी रात की रजनी,
सुमन सुख बेल सी रजनी।

बना है चांद दूल्हा जब,
सजी दुल्हन तभी रजनी।

चली बारात तारों की,
मगन आकाश सी रजनी।

करे परछन यहां आभा,
वहां सकुचा रही रजनी।

हवन आदित्य में पूरे,
किए फेरे जगी रजनी।

विदाई कर रहीं किरनें,
सिमट कर रो पड़ी रजनी।

किरन-आभा मिली जैसे,
फफक कर चीखती रजनी।

हुआ सावन झरे आंसू,
बिखर शबनम बनी रजनी।

उठी डोली, सखीं रोतीं।
पिया के घर चली रजनी।।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 4:59pm

वाह! आदरणीय केवल जी, बहुत सुंदर गजल पर बधाई स्वीकारें

Comment by Abhinav Arun on August 21, 2013 at 2:46pm

वाह वाह वाह सत्यम जी ..शानदार लाजवाब ग़ज़ल हुई है -

हुआ सावन झरे आंसू,
बिखर शबनम बनी रजनी।


उठी डोली, सखीं रोतीं।
पिया के घर चली रजनी।।

इन दो शेरों पर ख़ास बधाई आपको !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 21, 2013 at 2:08pm

आदरणीय केवल भाई जी ग़ज़ल पर आपका यह प्रयास मुझे मुग्ध कर गया, सच कहूँ तो आपकी अब तक की यह सबसे सुन्दर ग़ज़ल है. सभी के सभी शेर दिल को छू गये, दिल से ढेरों बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2013 at 11:33am

वाह केवल भाई , छोटी बह्र मे अच्छी गज़ल ! बधाई !!

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