For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुमशुदा खुशियां कहां रहने लगी है आज छुप कर

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर

***************************************

दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना

क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे

जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना

आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है

फैसला करने से पहले दोस्तों से पूछ लेना

रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर

रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर  

जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना

किस तरह मैने गुज़ारा वक़्त अपना उन दिनों में

तुम घिरोगे जब कभी तो उलझनों से पूछ लेना

.

गिरिराज भंडारी

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 927

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on August 31, 2013 at 10:38pm

आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है

फैसला करने से पहले दोस्तों से पूछ लेना       ( दोस्तों से पूछ लेना की जगह " तुम खुदी से पूछ लेना " ज्यादा सही लगता है।  जितने दोस्त उतनी प्रतिक्रिया भी तो होगी )।

पूरी गजल में प्रवाह है अच्छी लगी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 10:37pm

बहुत बहुत शुक्रिया , सौरभ भाई !! मिसरा सुधारने का प्रयास करूंगा !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 10:29pm

//मुझे बह्र की जानकारी नही है , यूँ ही स्वांतः सुखाय लिखता था , अभी ओ बी ओ ज्वाइन करने के बाद गज़ल सीख रहा हूँ //

यह स्पष्ट हो गया है, आदरणीय गिरिराज जी. परन्तु, आपके उत्साह और साहित्यानुराग के प्रति हम सम्मान का भाव रखते हैं. आपकी ग़ज़ल के मिसरों की मात्रा २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ पर आधारित है. किन्तु, अधोलखित मिसरा इस संयोजन से अलग है.

आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है

लेकिन पुनः कहूँगा,  प्रस्तुत ग़ज़ल की तासीर मुग्ध करती है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 3:21pm

आदरणीय आशुतोष भाई रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 3:18pm

आदरणीया , राजेश कुमारी जी , हौसला अफज़ाई के लिये  आपको बहुत बहुत धन्यवाद !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 3:16pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपके हर शब्द मेरे लिये अमूल्य है ! आपका हार्दिक आभार !

मुझे बह्र की जानकारी नही है , यूँ ही स्वांतः सुखाय लिखता था , अभी ओ बी ओ ज्वाइन करने के बाद गज़ल सीख रहा हूँ , आप लोगों के सहयोग से ! आशा है सुधार कर पाउंगा !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2013 at 2:54pm

वाह वाह आदरणीय गिरिराज जी सुभानल्लाह क्या ग़ज़ल लिखी है शानदार तहे दिल से दाद दे रही हूँ 

रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर

रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना---kamaal


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 2:26pm

मैं नहीं समझता आप ग़ज़ल लिखते/ कहते नहीं होंगे. आपकी इस आपकी इस प्रस्तुति पर मैं दिल से बधाई दे रहा हूँ, आदरणीय गिरिराज जी.
मतले के उला में आसुँओं से पूछ लेना होगा. से बस टंकित होने से रह गया है.
मैं आपकी सोच और प्रस्तुति पर हृदय से बधाइयाँ दे रहा हूँ.

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे
जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना

रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर
रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना

उपरोक्त अशार ने तो बस मुग्ध कर दिया.
आपसे और की अपेक्षा है, आदरणीय.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:33am

अशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:32am

आदरणीय बृजेश भाई , आपका आभार !!  बहर की क्लास मे मै अभी खुद नया हूँ , 5 -6 दिन हुये है ! पुरानी रचना को वीनस भाई जी बह्र पूछ कर फिर सुधार कर पोस्ट किया था । सही सुधार पाया कि नही तय नही था । आगे से क्याल रखूंगा !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service