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ग़ज़ल : न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

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न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से

 

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से

 

ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा

ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से

 

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से

 

चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’

जमाने तंग आया मैं तेरी आशिक मिजाजी से

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 14, 2013 at 9:47pm

आ0 धमेन्द्र भाई जी, सादर प्रणाम! वाह! बेहतरीन गजल। तहेदिल से दाद कुबूल करें। सादर,

Comment by Abhinav Arun on August 14, 2013 at 7:29pm

वाह जिंदाबाद सज्जन जी !

ग़ज़ल मुखर होकर हस्तक्षेप कर रही है ..

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से

.. जनजन के विचारों को स्वर दिया है इस ग़ज़ल ने और इस शेर ने बहुत बहुत बधाई इस सशक्त लेखन पर आदरणीय 

ब स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई !!

 

Comment by बसंत नेमा on August 14, 2013 at 4:53pm

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से.

आ0 धर्मेन्द्र जी बहुत सुन्दर .. सत्यम है सुन्दरम है ....... बधाई ..  

Comment by Sulabh Agnihotri on August 14, 2013 at 2:43pm

बहुत सुन्दर है, धर्मेन्द्र सिंह जी !

Comment by aman kumar on August 14, 2013 at 12:33pm

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से

सुंदर रचना ..........

Comment by Ketan Parmar on August 14, 2013 at 11:36am

न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से

khoobsurat matla or puri ghazal sahab daad qabool kare

Comment by विवेक मिश्र on August 14, 2013 at 11:34am
मतला और मकता, दोनों खासकर पसंद आए सज्जन भाई। दाद क़बूल हो।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 14, 2013 at 11:08am
बेहतरीन गज़ल कही भाई !! बधाई !!
Comment by AVINASH S BAGDE on August 14, 2013 at 10:29am

चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’

जमाने तंग आया मैं तेरी आशिक मिजाजी से...wah!

Comment by AVINASH S BAGDE on August 14, 2013 at 10:28am

न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से..wah! janab...nayab..

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