For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए

रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए

प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए

मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब 

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो गए

(मौलिक अवं अप्रकाशित)

Views: 1126

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 5, 2013 at 11:16am

 KISHAN KUMAR जी गीत पसंद करने हेतु आभार|

Comment by Abhinav Arun on August 5, 2013 at 5:37am

प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी 
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए

वाह वाह क्या कहने है राणा भाई शानदार , अद्भुत आपका ये रंग कहीं छुपा हुआ था ..उभर कर सशक्त रूप में आई है रचना ... बार बार पढ़कर आनंदित हूँ ,,,,सुन्दर अति सुन्दर सृजन के लिए साधुवाद !!

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 9:20pm

प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी 
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए

वाह ...प्रश्न पत्र सी जिन्दगी ..बहुत सटीक उपमा, और ताका झांकी के प्रयोग ने तो कमाल का असर पैदा किया है|

मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब....बिछोह पीड़ा उजागर हुयी  

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब....बिडम्बना देखिये की जब गुलमोहर तले स्कूल था, तो हम भवन निर्माण के अनुदान की गुहार लगाते थे, और अब जब भवन में है तो वही गुलमोहर याद आता है| मेरी क्लास जिस चन्दन के पेड़ के तले लगती थी, वह नही रहा, इन्हीं भवन निर्माण के चलते....शुक्रिया आपका, आपने दबी याद में ताजगी भर दी        

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2013 at 7:39pm

"प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी 
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए"..........इन पंक्तियों में वास्तविकता साफ साफ दिखाई देती है,

आदरणीय राणा प्रताप जी, सुंदर व् भावनात्मक रचना , हार्दिक बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 6:32pm

वाह! जिस तरह बिम्बों द्वारा जिंदगी की आपाधापी को आपने उकेरा है वह लाजवाब है! बहुत ही सुन्दर गीत! आपको नमन!

Comment by विवेक मिश्र on August 3, 2013 at 4:13pm
/रतजगों की फसल/
/प्रश्नपत्रों सी ज़िन्दगी/
/गुलमोहर के तले स्कूल/
अहा। क्या खूब बिम्ब हैं। बिम्बों का देसीपन ही आपके गीतों की विशेष पहचान है। 'तुलसी के बिरवे' के बाद ये 'चम्पा के फूल' भी बहुत पसन्द आए। बधाई हो बधाई।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 3, 2013 at 4:01pm

मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब 

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ 
स्वप्न आये न फिर जो गए-------ये पंक्तिया बहुत भा रही है |अब ये सब बात आने वाली पीढ़ी कहानियों में ही पढेगी | 

बहुत  सुन्दर भाव रचना के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री राणा प्रताप सिंह जी, सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2013 at 1:30pm

ठेठ बिम्बों का प्रयोग एकदम से मोह गया है.

रतजगों की फसल काटने का अनुभव सही है अचानक नहीं मिल जाता.  उनकी फसलों के लिए पहले उनके बीज बोने की पूरी क़वायद सी होती है. बहुत गहन भाव अपने पूरे बहाव में है.

इसी तरह पर्चों का लीक होजाना और ज़िन्दग़ी का बेमायना होजाना शिद्दत से उभर कर आया है.

या फूल चुनने और बाग़-बगीचे, जिसे बगइचा कहना उचित समझता हूँ, में पेड़ों के नीचे चलते स्कूल बहुत कुछ कहते हैं.

इसीतरह, चम्पई उँगलियों से जो कुछ इंगित है वह बस अनुभव करने की चीज़ है. 

इस भाव-रचना केलिए हार्दिक बधाई.

ऐसा संभव है,  मात्रिकता का निर्वहन कुछ और अनुशासन की अपेक्षा करता दिखे. 

साथ ही यह भी कहूँगा कि यह उतना ही सच है कि ऐसे बिम्ब ज़मीनी रस-रसना  भी माँगते हैं. उस रस से तदनुरूप अभिसिंचित करने का अधिकार रचनाकार का है. पाठक की अपेक्षा वातावरण की अवश्य होती है.

पुनः हार्दिक बधाइयाँ और अनेकानेक शुभकामनाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 3, 2013 at 12:13pm

वीनस भाई ..आपको मज़ा आया ..मुझे भी भी आया|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 3, 2013 at 12:13pm

माथुर साहब ..गीत को सराहने के लिए धन्यवाद|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service