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हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?

बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।

 

यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,

बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।

 

भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,

फिर निगलने के लिए भी, घट- गरल पाएँगे आप।

 

निर्बलों की नाव गर, मझधार छोड़ी आपने,

दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।

 

प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,

मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।

 

शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,

क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।

 

याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,

हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।   

 

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

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Comment by कल्पना रामानी on July 24, 2013 at 9:34pm

आदरणीय केतन कुमार जी, प्रशंसात्मक शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on July 24, 2013 at 9:33pm

आदरणीय प्राची जी, आपके उत्साह जनक शब्द प्रफुल्लित कर गए। आपका हृदय से आभार

Comment by कल्पना रामानी on July 24, 2013 at 9:31pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आपकी प्रोत्साहित करती हुई सुंदर टिप्पणी  के साथ उपस्थिति से अपर हर्ष हुआ आपका हार्दिक आभार

सादर

Comment by सूबे सिंह सुजान on July 24, 2013 at 6:53pm

bhut sunder kha hai ji

Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 3:41pm

प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,

मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।//////सुन्दरतम

याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,

हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।   ///परम सत्य 

 

वाह आदरणीया उम्दा ग़ज़ल  //हार्दिक बधाई //सादर 

Comment by coontee mukerji on July 24, 2013 at 3:30pm

अति सुंदर प्रस्तुति.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 2:49pm

आदरणीया कल्पना रामानी जी

सभी अशआर बहुत चिंतन ,दर्शन परक हैं , खूबसूरत हैं ...बहुत पसंद आये 

हार्दिक बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2013 at 1:46pm

एक सन्देश को समाहित किये हुए एक उम्दा ग़ज़ल ..

क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।

 

याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,

हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आ...ये तीनो पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आयेएं ..सादर बधाई और प्रणाम के साथ 

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 11:16am

 

याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,

हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।  

bahut hi sunder shudh hindi ghazal

meri or se aapko sat sat naman


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 24, 2013 at 11:13am

बेहद सुन्दर ग़ज़ल रची है माननीया कल्पना रामानी जी, सभी अश'आर दिल में गहरे उतरने की कैफियत रखते हैं. इस शानदार प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

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