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मौन शब्द
 
कहे और अनकहे के बीच बिछे
अवशेष  कुछ  शब्द  हैं  केवल,
शब्द भी जैसे हैं नहीं,
ओस-से टपकते शब्द
दिन चढ़ते ही प्रतिदिन
वाष्प बन उढ़ जाते हैं
और मैं सोचता हूँ ... मैं
आज क्या कहूँगा तुमसे ?
 
अनगिनत  भाव-शून्य  शब्द                                               
इस अनमोल रिश्ते   की  धरोहर,                                                                                            
व्याकुल प्रश्न, अर्थ भी व्याकुल
मिथ्या शब्दों की मिथ्या अभिव्यक्ति,
एक ही पुराने रिश्ते से रिसता
रोज़- रोज़ का एक और नया दर्द ...
बहता नहीं है , बर्फ़-सा
जमा रह जाता है।
 
फिर भी कुछ और मासूम शब्द
जाने किस तलाश में चले आते हैं,
उन  शब्दों  के  भावों से शराबोर 
मैं वर्तमान  को  भूल  जाता  हूँ ।
तुम्हारी उपस्थिति में हर बार
यह शब्द  नि:शब्द हो जाते हैं
और मैं कुछ भी कह नहीं पाता,
शब्द उदास लौट आते हैं।
 
तुम्हारी आकृति यूँ ही ख़्यालों में
हर  बार,  ठहर कर, खो  जाती  है,
और मैं  भावहीन  मूक  खड़ा
अपने शब्दों की संज्ञा में उलझा
ठिठुरता रह जाता हूँ ।
यह मौन शब्द
असंख्य  असंगतियों  से   घिरे
मुझको संभ्रमित छोड़ जाते हैं।
 
इन उदासीन, असमर्थ, व्याकुल
शब्दों की व्यथा
भीतर  उतर आती है,
सिमट  रहा  कुछ  और  अँधेरा
बाकी रात  में  घुल  जाता  है,
और उसमें तुम्हारी आकृति की
एक और असाध्य खोज में
यह शब्द  छटपटाते  हैं ... 
तुमसे  कुछ  कहने  को,  वह 
जो मैं आज तक कह न सका।
 
हाँ, तुमसे कुछ सुनने की
कुछ कहने की  जिज्ञासा
अभी  भी  उसी  पुल  पर
हर रोज़ इंतजार करती है।
             ---------
 
 -- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by vijay nikore on August 8, 2013 at 7:25am

आदरणीया  गुल  सारिका  जी:

 

सफ़र  पर  होने  के  कारण  उत्तर  में  विलंब  के  लिए  क्षमाप्रार्थी  हूँ।

 

आपके उत्साह वर्धन से उक्त रचना सार्थकता को प्राप्त हुई, हार्दिक धन्यवाद।

ऐसे ही संबल देते रहें।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 8, 2013 at 7:13am

आदरणीय सौरभ भाई :

 

आपकी जुलाई १८ की स्नेहमय कोमल प्रतिक्रिया अभी सफ़र से लौटने पर पढ़ी,

अत: उत्तर में विलंब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

 

आपका स्नेहसिक्त आशीर्वाद और मनोहारी भावाभिव्यक्ति दोनो मेरा उत्साहवर्धन करते हैं।

परम आदर एवं आभार सहित।

 

विजय निकोर

 

Comment by aman kumar on August 7, 2013 at 4:08pm
तुमसे  कुछ  कहने  को,  वह 
जो मैं आज तक कह न सका।
दिल की बात कलम तक ले आते है आप , 
भावनाओ के शाब्दिक करण आपकी कला है .....
Comment by Vasundhara pandey on August 7, 2013 at 3:09pm

मौन की भाषा तो सबसे ताकतवर होती है...शब्द नही लौट सकते कभी उदास..उन्हें उन तक पहुचना ही  होता है जिनसे जो कहना है...

मौन पर बहुत सुन्दर रची हुइ आपकी रचना ..बहुत बहुत बधाई !!

Comment by Gul Sarika Thakur on July 23, 2013 at 10:54pm

शब्द भले ही उदास लौट आए

मौन की अपनी ही शब्दावली होती है

जिस बिन्दु पर शब्द गूंगे और भाषा बहरी हो जाती है

उस वक्त मौन प्रखर होकर सम्प्रेषण के दायित्व को निभा ले जाता है। सुन्दर रचना .. चिंतन के लिये उत्प्रेरित करती सी ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 3:58pm

आदरणीय विजय भाई, सही कहिये तो आपकी उँगलियों को चूम लेने को दिल चाहता है जो आपके उर्वर मनस की वृत्तियों के सामंजस्य से इतने सान्द्र शब्द उकेरती रहती हैं.

कई दिनों बाद, आदरणीय, कई दिनों बाद.. आपकी इतनी उत्कृष्ट रचना आयी है. कई बार आपके शब्द-प्रक्षेपणों से मन उकता जाता है, जिसे मैं हठात् बोल देता हूँ. 

लेकिन इस प्रस्तुति में जिस ऊँचाई से आपने पवित्र भावनाओं को सार्थक अभिव्यक्ति दी है वह आपके कहे के प्रति नत करती है.   हर पंक्ति संप्रेषण का अन्यतम उदाहरण प्रतीत हुआ है मुझे.  और, आखिरी बंद ने ..  ओह, नम कर दिया, साहब !

इस अभिव्यक्ति के लिए सादर धन्यवाद तथा ढेर सारी शुभकामनाएँ..

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 1:01pm

आदरणीय संदीप जी:

आपकी प्रतिक्रया उत्साहवर्धक और प्रेरक है मेरे लिए -
हार्दिक
धन्यवाद

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 12:58pm

आदरणीया वंदना जी:

 

आपके औदार्य को नमन। रचना की सराहना के लिए आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 12:55pm

आदरणीय विजय मिश्र जी:

 

भावी आशा मन में संजोए आपके सदभावी आशीर्वचनों के लिए बहुत धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 12:51pm

आदरणीय अतेन्द्र जी:

 

रचना की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ।

धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

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