For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत (राजेश कुमार झा)

इक औरत सी तन्‍हाई को

जब यादें कंधा देती हैं

दीर्घ श्‍वांस की

चंड मथानी

मथ जाती

देह-दलानों को

टूटे प्‍याले

रोज पूछते

कम-ज्‍यादा

मयखानों को

गलते हैं हिमखण्‍ड कई पर

धारा कहां निकलती है

नि:शब्‍द सुलगती

रात पसरती

उष्‍ण रोध दे

प्राणों को

कौन रिफूगर

टांक सकेगा

इन चिथड़े

अरमानों को

कैसे पाउं मंजिल ही जब

पल-पल जगह बदलती है

कीर्ण आस भी

चली रसातल

भुवन-भार दे

तानों को

पीत-पर्व के

तिरते बादल

करते चूर

निशानों को

होता मैं दाधीच अस्थियां

लेकिन सहज पिघलती हैं

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 809

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 4:18pm

आदरणीय सौरभ जी, आपके इंगितार्थ को समझने में मैं अक्षम रहा, कृपया थोड़ा समय देकर अनुगृहीत करें, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 4:17pm

आप सबका सादर आभार । आपकी अमूल्‍य प्रतिक्रियाएं मुझे हमेशा प्रोत्‍साहित करती रहेंगी, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 3:23pm

आदरणीय राजेश झा जी,

आपका नवगीत जहाँ एक ओर साथ बहने का न्यौता देता दिख रहा है तो साथ बह रहे कई कारण हठात् रोक भी रहे हैं.

रचनाकर्म में आंचलिक भाषा के शब्दों का लालित्य मनोहारी होता है, इसे मैं खूब समझता हूँ. लेकिन प्रयुक्त शब्दों की अक्षरी में सायास परिवर्तन सहमा देता है कि कहीं यह उदाहरण और फिर एक परिपाटी न बन जाये.

सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2013 at 1:18pm

वाह बहुत ही सुन्दर भाव से ओतप्रोत नवगीत आदरणीय राजेश भाई जी क्या कहने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on July 10, 2013 at 11:22pm

बढ़िया नवगीत रचा आदरणीय राजेश जी !
हार्दिक बधाइयाँ  !!
 

Comment by ajay sharma on July 10, 2013 at 11:08pm

नि:शब्‍द सुलगती

रात पसरती

उष्‍ण रोध दे

प्राणों को

कौन रिफूगर

टांक सकेगा

इन चिथड़े

अरमानों को

कैसे पाउं मंजिल ही जब

पल-पल जगह बदलती है    nih.shabdh ...... wah wah wah

Comment by वेदिका on July 10, 2013 at 10:07pm

बहुत ही मार्मिक और पीर भरा नवगीत,

हार्दिक बधाई लीजिये!!  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 10, 2013 at 9:53pm

नि:शब्‍द सुलगती

रात पसरती

उष्‍ण रोध दे

प्राणों को

कौन रिफूगर

टांक सकेगा

इन चिथड़े

अरमानों को

बहुत सुन्दर भाव व् बिम्ब संयोजन बहुत बढ़िया प्रस्तुति बधाई आपको राजेश झा जी 
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2013 at 8:18pm

आ0 राजेश भाई जी,

‘कीर्ण आस भी
चली रसातल
भुवन.भार दे
तानों को‘...बहुत खूब! सुन्दर अभिव्यक्ति। वास्तव में नारी की पीड़ा का अन्त रसातल से भी अतल तल में है, जिसे केवल नारी ही सहन कर सकती है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by राजेश 'मृदु' on July 10, 2013 at 7:12pm

कल्‍पना दी, आपका आशीष मिला मैं धन्‍य हो गया । आपकी प्रेरणा से आगे बढ़ने का सतत प्रयास करता रहूंगा, सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service