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तरही ग़ज़ल (अभी कुछ और करिश्में ग़ज़ल के देखते हैं)

हम अपने प्यार का लहजा बदल के देखते हैं 
तुम्हारी तर्ज़े अदा में भी ढल के देखते हैं 
.
तुम अपनी तल्ख़ ज़ुबां में जो शीरिनी लाओ 
तो हम भी क़ैदे अना से निकल के देखते हैं 
.
वो  दौर और था जब रूह की गिज़ा थी ग़ज़ल 
अभी कुछ और करिश्में ग़ज़ल के देखते हैं  
.
दिखाई देता था छप्पर ही ख़्वाब में हमको 
तुम आ गये हो तो सपने महल के देखते हैं 
.
हवा के दोस पे नामा ये कैसा है "साहिल"
सलाम किसका लिखा है ये चलके देखते हैं
.
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 2:13am
तुम अपनी तल्ख़ ज़ुबां में जो शीरिनी लाओ 
तो हम भी क़ैदे अना से निकल के देखते हैं 
.
वो  दौर और था जब रूह की गिज़ा थी ग़ज़ल 
अभी कुछ और करिश्में ग़ज़ल के देखते हैं 

वाह वा जिंदाबाद
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 5, 2013 at 10:28pm
आदरणीय..शुशील जी, सुंदर गजल प्रस्तुति..बधाई
Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 6:10pm

बहुत खूब!

Comment by Sushil Thakur on July 4, 2013 at 5:59pm

आदरणीय saurabh sab.  ग़ज़ल  तो आकार ले पायी थी पहले ही मगर  दूसरी  समस्या की वजह से आप को सही समय से भेज नहीं पाया था .  दाद के लिए शुक्रिया कुबूल करें. अभी में पूरी तरह से OBO से जुड़ नहीं पाया हूँ इसलिए थोड़ी परेशानी भी हो रही है अपरिपक्वता की वजह से 

इस्लाह के लिए धन्यवाद . फिलहाल तो जिस रूप में ग़ज़ल है रहने दिया जाय . वैसे सिखने की कोई उम्र सीमा नहीं होती, ऊपर से मैं तो अभी तिफ़्ले मकतब से ज़्यादा कुछ   नहीं . 

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 4, 2013 at 5:48pm

वह वह क्या  बात है

 सादर 

Comment by वेदिका on July 4, 2013 at 1:51pm

खूब खूब सूरत गजल पर बधाई लीजिये!! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 12:23pm

आदरणीय सुशील ठाकुर जी, तरही मुशायरे की समाप्ति के बाद आपकी ग़ज़ल आकार ले पायी होगी. या कोई अन्य समस्या रही होगी कि उस ऑनलाइन इण्टरऐक्टिव आयोजन का यह हिस्सा नहीं बन पायी. जो हो, ग़ज़ल बहुत ही संयत एवं प्रभावशाली है.

काश यह ग़ज़ल मुशायरा का हिस्सा हुई होती.  दिल से दाद कुबूल करें.

एक बात अवश्य साझा करना चाहँगा, मतले के मिसरा ए उला और सानी को आपस में क्यों न बदल कर देखा जाये. सानी में आया भी बात की अपूर्णता दखाता हुआ सा लग रहा है. ऐसा मेरा सोचना है.

बहरहाल, इसग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई.

सादर

Comment by sanju shabdita on July 4, 2013 at 10:59am

sundar rachna....badhai

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