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रूठकर गयी थी सुबह मुझसे 

रात का दर्पण दिखा कर 
फिर लौट आयी है सुबह !!.
.
रूठकर गयी थी बहार मुझसे 
पतझड के पत्ते उड़ा कर 
फिर लौट आयी है फिजा !!
.
रूठकर जो गये तुम मुझसे 
न आये लौट के.....लौट के आयी
मन का अज़ाब और यादें नाचार !!
.
.
अज़ाब =पीड़ा,  नाचार =असहाय
 
सुमित नैथानी 
मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sumit Naithani on June 29, 2013 at 4:26pm

वर्मा जी शुक्रिया ..प्रतिक्रिया के लिए 

Comment by Shyam Narain Verma on June 29, 2013 at 4:25pm

बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना..........................

Comment by Sumit Naithani on June 29, 2013 at 4:14pm

जितेंदर जी शुक्रिया ...बस आप लोगो का प्यार बना र्हे और मैं यूही लिखता रहूं 

Comment by Sumit Naithani on June 29, 2013 at 4:13pm

Dr Babban Jee shukriya

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2013 at 1:41am
आदरणीय..सुमित जी, बहुत ही सुंदर पंक्तियों से इक भावनात्मक रचना के प्रस्तुतिकरण पर, हार्दिक शुभकामनाऐं स्वीकार करें..'रूठकर जोगये तुममुझसे

नआयेलौटके.....लौटके आयी

मनकाअज़ाबऔर यादेंनाचार !!
Comment by Dr Babban Jee on June 28, 2013 at 7:51pm

प्रिय सुमित जी
रात को फिर लौट कर आनी ही थी, क्योंकि उसको भी आपका इंतेज़ार था/ शुभकामना 

 

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