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कुछ खरी खोटी....कुण्डलिया

कुणडलिया
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लाख दवायें कर रहे, कम ना होता रोग
लिखा शास्त्र मे है यही, सबसे उत्तम योग
सबसे उत्तम योग, रोग यह दूर भगाता
ह्रदयों मे उत्साह , बदन मे फुर्ती लाता
स्वस्थ वही हैं आज, योग जो करते जायें
काम करे जो योग, करे नहि लाख दवायें
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बात बनाना है कला, बात सही यह जान
भागदौड की जिंदगी, आता हरदम काम
आता हरदम काम, मुसीबत दूर भगाता
मुश्किल जो हैं काम, उसे यह सहज बनाता
कहते हैं कविराय, पडा उसको पछताना
सीख सका नहि आज, अभी तक बात बनाना
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मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by manoj shukla on May 9, 2013 at 8:23am
हार्दिक आभार ...... आदर्णीय श्री. अशोक जी
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 9, 2013 at 8:13am

अब बढ़िया है, पुनः बधाई स्वीकारें.

Comment by manoj shukla on May 8, 2013 at 10:43pm
सादर आभार आपका आदर्णीय अशोक जी.....आपके सुझाव अनुसार मैने कुछ परिवर्तन कर दिया.... हार्दिक आभार
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 9:09pm

भाई मनोज जी सादर, सुन्दर कुण्डलिया छंद लिखे हैं सादर बधाई स्वीकारें. मगर कुछ सुधार अपेक्षित है. "दवा दवाई खा रहे" यह पंक्ति कुछ ठीक नहीं लग रही है.कुछ फेर बदल की आवश्यकता है. 

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