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नवरात्र ..लघु कथा 
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शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है  अपने खाने में से वो किसी को पूंछते  नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.

नवरात्र में वे फलाहार कार्यालय कैम्पस के बाहर लगे फलों के ठेले पर करते . सो नित्य की भांति वे फलाहार करने गए. पीछे पीछे मैं भी गया कि व्रत के नाम पर एक दो केले मुझे भी मिल जाएँ. पर ऐसा सौभाग्य कहाँ. एक दर्जन केला खरीदा और शुरू हो गए . मैं जानता तो था ही आदत उनकी , मुझे निराशा ही हाथ आयी. सो मैने भी दो केला लिए . देखा कि एक छोटी बालिका अपनी गोद में शिशु लिए शर्मा जी की ओर इस प्रत्याशा से टुकुर टुकुर टाक रही थी कि शायद कृपा द्रष्टि हो और शर्मा जी से एक आध केला मिल जाए. 
शर्मा जी कहाँ पिघलने वाले . एक दर्जन केला सफाचट और निगाहें मेरे दो अदद केलों पर. 
मुझसे तो रहा न गया ,मैने एक केला बालिका को दे दिया. दूसरा शर्मा जी को दे दिया. बालिका के अधरों पर आयी मुस्कान मुझे संत्रपत् कर गयी.
शर्मा जी नवरात्र में आप घर में कन्या नहीं खिलाते  ?
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
१८-४-२०१३ 
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 1:48pm

स्नेही पाठक जी 

सादर आभार 

Comment by Dr.Ajay Khare on April 22, 2013 at 1:12pm

kushwaha ji aapki laghu katha ek sandesh hai badhai

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 18, 2013 at 11:12pm

आदरणीय  प्रदीप कुमार सिहं जी,   सार्थक कथ्य।  हार्दिक बधाई स्वीकारे।  सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 9:58pm
बहुत ही तीखा व्यंग सर जी
सादर बधाई हो
जय हो
Comment by वेदिका on April 18, 2013 at 7:42pm

वाह वाह आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी ने जो इतना सटीक जबाव दिया है उसको सुनके तो शर्मा जी चुपचाप घर चले गये होंगे ...और आयेगे राम नवमी के बाद ....!
बधाई इस सटीक वार पे आदरणीय संदीप सिंह जी!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 18, 2013 at 7:40pm

तीक्ष्ण कटाक्ष! बधाई आदरणीय!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 18, 2013 at 6:43pm

शर्मा जी ब्राह्मण है वे तो स्वयं जज्मान के याहा निमंत्रितहोते है | नवरात्री को ही अपने घर की कन्या को ही खिलाकर नवरात्रि मना लेते है ? अब ठेलेवाले से लेकर कार्यालय समय में अपनी क्षुधा शांत करे या वहाः भी नवरात्रि मनाकन्या को खिलाने का दायित्व निर्वाह करे ? नाहक ही शर्माजी को शर्मिनदा कर रहे है ? अब बिचारे शर्माजी क्याजवाब देते चुप रहने में ही भलाई समझी | हां ब्राह्मण समझ आपने एक केला उन्हें भी देकर नेक काम क्या है |

 

शर्मा जी नवरात्र में आप घर में कन्या नहीं खिलाते  ? - ये पंक्तिया आगे सब कुछ बया कर रही है | बधाई भाई श्रीप्रदीप जी अच्छी लघु कथा के लिए 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 18, 2013 at 6:26pm

नवरात्र में कन्या पूजन का अर्थ ही न समझने वाली मानसिकता पर करारा प्रहार करती लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय प्रदीप जी 

Comment by ram shiromani pathak on April 18, 2013 at 5:05pm

 बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने आदरणीय //वास्तविक पूजा या व्रत यही है किसी निर्धन की सहायता करो !!हार्दिक बधाई 

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