For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम कहीं भी महफ़ूज नहीं है

वो कभी भी, कहीं भी, हमारी हत्या कर सकते हैं

हम इंसान हैं

वो आतंकवादी

 

पर वो नहीं जानते

कि हम पर चलाई गई हर गोली

उनके धर्म की छाती में जाकर धँसती है

 

हम फिर पैदा हो जायेगें

सौ मरेंगे तो हजार और पैदा हो जायेंगे

 

पर उनका धर्म एक बार मर गया

तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा

 

धर्म जान लेने या देने से नहीं

जान बचाने से फैलता है

 

और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू

किसी भी धर्म को

इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते 

--------------------

(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

Views: 955

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2013 at 7:32pm

आदरणीय Yogi Saraswat जी, ram shiromani pathak जी, vijay nikore जी, SANDEEP KUMAR PATEL जी, Kewal Prasad जी, rajesh kumari जी, Ashok Kumar Raktale जी, आप सबने इस रचना को पढ़ा और सराहा इसके लिए आप सबका आभारी हूँ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 18, 2013 at 8:08am

पर उनका धर्म एक बार मर गया

तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा

 

धर्म जान लेने या देने से नहीं

जान बचाने से फैलता है..............बिलकुल सही कहा है.

आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर,  बहुत अच्छी नसीहत दी है. उत्तम रचना के लिये हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 17, 2013 at 8:20pm

धर्मेन्द्र जी आज आपकी रचना का मिजाज कुछ अलग ही है दिल की गहराइयों से निकले शब्द पन्नो पे उतर आये हैं बहुत ही अच्छी बाते लिखी हैं हार्दिक बधाई पर इन हत्यारों का ना कोई धर्म ना कोई जमीर होता है इनका हिसाब बस भगवान् की अदालत में ही होता होगा । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 6:22pm

आदरणीय, धर्मेद्र कुमार सिंह जी,
’और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू
किसी भी धर्म को
इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते ’दहशतगर्दों का कोई मजहब नहीं होता है। अच्छी रचना । बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 5:15pm
बहुत सुन्दर सर जी
काश ये बात जान लेने वाले समझ पाते
बहुत बहुत बधाई हो आपको इस सुन्दर रचना हेतु
सादर प्रणाम
Comment by vijay nikore on April 17, 2013 at 1:53pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी:

 

बहुत अच्छे, सच्चाई से भरपूर ज़ोरदार भाव हैं।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on April 17, 2013 at 12:18pm

 आदरणीय बहुत सुन्दर रचना बन पड़ी है!हार्दिक बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on April 17, 2013 at 12:13pm

धर्म जान लेने या देने से नहीं

जान बचाने से फैलता है

 

और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू

किसी भी धर्म को

इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते

बहुत बढ़िया ! सुन्दर सन्देश देती हुई रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service