For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना-

मौलिक / अप्रकाशित


जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |


यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |
पर सांसत में जान, पडा इटली से पाला |


बनवाया उस रोज, आय व्यय का तख्मीना |
जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना ||

बजट = आय व्यय का तख्मीना

Views: 439

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pawan amba on March 3, 2013 at 1:58pm

achha likha hai sir

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2013 at 6:34pm
आनँदित हूँ वाह रविकर जी !
Comment by Dr.Ajay Khare on March 2, 2013 at 4:24pm

BADHIYA LIKHA HAI

Comment by रविकर on March 2, 2013 at 3:49pm

आदरणीय त्रिपाठी जी-

शायद अब अधिक स्पष्ट है कथ्य -

यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |

खुल जाती झट पोल, पडा इटली से पाला |

Comment by रविकर on March 2, 2013 at 3:43pm

आभार आदरणीय सौरभ सर -


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2013 at 3:41pm

इंगितों के माध्यम से बात करना तो कोई आपसे सीखे, आदरणीय. जीते चालीस चोर, रोज़ मरती मरजीना .. के कूट पर आपने आजके माहौल में सामान्य गृहणियों की दशा का सुन्दर वर्णन किया है.

बधाई.. .

Comment by रविकर on March 2, 2013 at 3:41pm

आभार आदरणीय पाठक जी |

आभार आदरणीय त्रिपाठी जी-
घपले अब जल्दी उजागर होने लगे हैं-
कुछ और स्पस्ट करने की कोशिश करता हूँ-
सुधार लेता हूँ-
सादर ||

Comment by ram shiromani pathak on March 2, 2013 at 3:27pm

आदरणीय रविकर जी!एक सामयिक कुंडलिया के लिये बधाई।

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 1, 2013 at 9:55pm
आदरणीय रविकर जी!एक सामयिक कुंडलिया के लिये बधाई।
निम्न पंक्तियां पर पुन: गौर मांगती हैं-
//जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |//
इन दोनो पंक्तियों में साम्यता नजर नहीं आ रही है,क्या कांग्रेसी राज पहले कम सख्त था या पहले अधिक घोटाले होते थे,अब कांग्रेस अधिक सख्त हो गया है,जो घपलेबाज सांसत में आ गये?

दूसरी बात दोहे कि दूसरी पंक्ति में //ना// का प्रयोग हिन्दी खड़ीबोली में ठीक नहीं माना जाता।क्या इस पंक्ति को इस तरह पढ़ना ठीक न होगा-
//पहले जैसा अब नहीं,यह कांग्रेसी राज//
आप प्रबुद्ध और रचना-कर्म सिद्धहस्त हैं देख लीजियेगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service