For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रविकर's Blog (76)

पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-

पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |


सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |


जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||

मौलिक / अप्रकाशित

वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध

Added by रविकर on November 3, 2013 at 9:00am — 13 Comments

नया बने सम्बन्ध, पकाओ धीमा धीमा-

सीमांकन दूजा करे, मर्यादा सिखलाय |
पहला परवश होय तब, हृदय देह अकुलाय |


हृदय देह अकुलाय, लगें रिश्ते बेमानी |
रविकर पानीदार, उतर जाता पर पानी |


यह परिणय सम्बन्ध, पके नित धीमा धीमा |
करिए स्वत: प्रबन्ध, अन्य क्यूँ पारे सीमा -

मौलिक / अप्रकाशित
(दुर्गा-पूजा / विजयादशमी की मंगल-कामनाएं )

Added by रविकर on October 10, 2013 at 4:00pm — 11 Comments

बचपन तब का और था, अब का बचपन और

(1)

बचपन तब का और था, अब का बचपन और |

दादी की गोदी मिली, नानी हाथों कौर |



नानी हाथों कौर, दौर वह मस्ती वाला |

लेकिन बचपन आज, निकाले स्वयं दिवाला |



आया की है गोद, भोग पैकट में छप्पन |

कंप्यूटर के गेम, कैद में बीते बचपन ||

(2)

संशोधित रूप-

तब का बचपन और था, अब का बचपन और |

तब दादी गोदी मिली, नानी से दो कौर |

नानी से दो कौर, दौर वह मस्ती वाला |

लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला…

Continue

Added by रविकर on October 9, 2013 at 9:00am — 15 Comments

ये दिल मांगत मोर-

दुर्मिल सवैया 

पुरबी उर-*उंचन खोल गई, खुट खाट खड़ी मन खिन्न हुआ |

कुछ मत्कुण मच्छर काट रहे तन रेंगत जूँ इक कान छुआ |

भडकावत रेंग गया जब ये दिल मांगत मोर सदैव मुआ  |

फिर नारि सुलोचन ब्याह लियो शुभचिंतक मांगत किन्तु दुआ  |

उंचन=खटिया कसने वाली रस्सी , उरदावन 

मत्कुण=खटमल 

अप्रकाशित / मौलिक 

Added by रविकर on October 8, 2013 at 4:00pm — 6 Comments

पड़े अनंत उपाय, किन्तु पहले शौचाला-

चित की शुचिता के लिए, नित्य कर्म निबटाय |
ध्यान मग्न हो जाइये, पड़े अनंत उपाय |


पड़े अनंत उपाय, किन्तु पहले शौचाला |
पढ़ देवा का अर्थ, हमेशा देनेवाला |


रविकर जीवन व्यस्त, करे कविता जनहित की |
आत्मोत्थान उपाय, करेगी शुचिता चित की |

मौलिक /अप्रकाशित

Added by रविकर on October 5, 2013 at 5:36pm — 10 Comments

करते नहीं अनर्थ, फैसले शान्त चित्ति के-

शान्त *चित्ति के फैसले, करें लोक कल्यान |
चिदानन्द संदोह से, होय आत्म-उत्थान |


होय आत्म-उत्थान, स्वर्ग धरती पर उतरे |
लेकिन चित्त अशान्त, सदा ही काया कुतरे |


चित्ति करे जो शांत, फैसले नहीं *कित्ति के |
करते नहीं अनर्थ, फैसले शान्त चित्ति के ||


चित्ति = बुद्धि
कित्ति = कीर्ति / यश

अप्रकाशित / मौलिक

Added by रविकर on October 4, 2013 at 11:00am — 11 Comments

बा-शिन्दे अभिमत यही, भेजें यह अभिलेख -

आलू-बंडे से अलग, मुर्गी अंडे देख |
बा-शिन्दे अभिमत यही, भेजें यह अभिलेख |


भेजें यह अभिलेख, नहीं भेजे में आये |
गिरा आम पर गाज, बड़ा अमलेट बनाए |,


भेदभाव कुविचार, किचन कैबिनट में चालू |
अंडे हुवे विशेष, हमेशा काटे आलू ||

मौलिक/ अप्रकाशित

Added by रविकर on October 1, 2013 at 10:24am — 6 Comments

चारा पाती गाय, हुई रौनक गौशाले

गौशाले में गाय खुश, बछिया दिखे प्रसन्न |
बछिया के ताऊ खफा, छोड़ बैठते अन्न |


छोड़ बैठते अन्न, सदा चारा ही खाया |
पर निर्णय आसन्न, जेल उनको पहुँचाया |


करते गधे विलाप, फायदा लेने वाले |
चारा पाती गाय, हुई रौनक गौशाले ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 30, 2013 at 5:20pm — 11 Comments

दो कुंडलियाँ - रविकर

(1)

हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार।

सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार।

 

देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे ।

करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे।

 

समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे ।

प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥

-----------------------------------------------

(2)

प्रणव नाद सा मुखर जी, पाता है सम्मान |

मौन मृत्यु सा बेवजह, ले पल्ले अपमान |

ले पल्ले अपमान , व्यर्थ मुट्ठियाँ भींचता…

Continue

Added by रविकर on September 28, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ -रविकर

कुण्डलियाँ


सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ |
अब क्या आशा राम से, हो रहे स्खलित विज्ञ |


हो रहे स्खलित विज्ञ, बने खरदूषण साले |
घालमेल का खेल, बुराई कुल अपना ले |


नित आगे की होड़, रखेंगे बढ़ा ताजिया |
सिया सती की लाज, बचा ले पकड़ हाँसिया ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 25, 2013 at 8:58am — 12 Comments

सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद-रविकर

कुण्डलियाँ छंद


टोपी बुर्के कीमती, सियासती उन्माद |
सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद |


पढ़ते मियाँ मिलाद, तिजारत हो वोटों की |
ढूँढे टोटीदार, जरुरत कुछ लोटों की |


रविकर ऐसा देख, पार्टियां वो ही कोपी |
अब तक उल्लू सीध, करे पहना जो टोपी |

अप्रकाशित/मौलिक

Added by रविकर on September 24, 2013 at 9:37pm — 6 Comments

नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज-रविकर

कुण्डलियाँ-


नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।


नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।


लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|


मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 24, 2013 at 11:53am — 12 Comments

मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले-

मसले पर जब बलबला, शब्द मनाते जीत |
भाव मौन रहकर मरे, यही पुरातन रीत |

यही पुरातन रीत, तीर शब्दों के घातक |
दे दे गहरी पीर, ढूँढ़ ले खुशियाँ पातक |

बड़े विकारी शब्द, मचलती इनकी नस्लें |
मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 23, 2013 at 11:32am — 9 Comments

दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके-

तब के दंगे और थे, अब के दंगे और |
हुड़दंगी सिरमौर तब, अब नेता सिरमौर |


अब नेता सिरमौर, गौर आ-जम कर करलें |
ये दंगे के दौर, वोट से थैली भर लें |


मरते हैं मर जाँय, कुचल कर बन्दे रब के |
दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 19, 2013 at 8:42am — 9 Comments

रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत-

रहमत लाशों पर नहीं, रहम तलाशो व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ |


अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |


करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत |

रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत ||

 

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 18, 2013 at 9:00am — 13 Comments

परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी-

टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |

अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |


रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |


परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||

.
*बेटी

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 12, 2013 at 2:00pm — 5 Comments

रहा स्वयं ही ठूस, भरे घर रविकर-ऐंड़ा

ऐंड़ा पेड़ा खाय लें, लेढ़ा जूठन खात |
टेढ़े-मेढ़े साथ में, टेढ़े-टेढ़े जात |


टेढ़े-टेढ़े जात, जात में पूछ बढ़ाये |
खेड़े बेड़े नात, मात त्यौरियाँ चढ़ाए |


टाँय टाँय पर फुस्स, कहीं कुछ नहीं निबेड़ा |
रहा स्वयं ही ठूस, भरे घर रविकर-ऐंड़ा ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 10, 2013 at 11:01am — 7 Comments

शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान-रविकर

सन्ता-बन्ता पर टिके, यदि जनता का ध्यान |
शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान |


पुन: जीत आसान, म्यान में रख तलवारें |
जान-बूझ कर जान, आम-जनता की मारें |


इक प्रकोष्ठ तैयार, ढूँढ़ता सकल अनन्ता |
बना नया हथियार, और भी लाये सन्ता ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 7, 2013 at 7:33pm — 8 Comments

भर देती सन्देह, खोपड़ी रविकर ठनकी-


कमा कमा परदेश में, पिया भुलाते नेह |
सुबह-सवेरे ज्वर कमा, तप्त रात भर देह |


तप्त रात भर देह, मेह रिमझिम सावन की |
भर देती सन्देह, खोपड़ी रविकर ठनकी |


भूल गए क्यूँ गेह, शीघ्र आ जाओ बलमा |
किंवा लाये सौत, हमें देते हो चकमा ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 6, 2013 at 2:54pm — 10 Comments

बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता-

गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल । 

गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल । 

 

गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी । 

नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी । 

 …

Continue

Added by रविकर on September 5, 2013 at 3:30pm — 11 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
7 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service