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दिया अब सब्र का भी बुझ रहा ...

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दिया अब सब्र का भी बुझ रहा अंतिम बगावत है
मगर ये रात खुलती ही नहीं लम्बी अमावस है ||

तमन्ना की जमीं पर जब कभी भी घर बनाया था 
हकीकत की लहर ने एक पल में सब डुबा डाला |
मेरी कोशिश मनाने की अभी तक भी निरंतर है 
सभी नाराज होने की वजह को भी मिटा डाला ||

तुम्हारा रूठना अब लग रहा मुझको क़यामत है 
सभी आदत बदल लूँगा तुम्हे जिन पर शिकायत है ||

वजह क्या थी खता क्या थी मुझे ये तो बता देते 
जरा सी बात पर यूँ चल दिए मुझको सजा देकर |
....मनाने के लिए तुम मांग भी लेते अगर साँसे 
......मुझे मंजूर होती मौत भी तुमको दुआ देकर ||

मेरे दिल में तुम्हारे नाम की अब भी लिखावट है 
न जाने क्यूँ तुम्हे शक है मुहोब्बत में मिलावट है ||

अगर कल मै कहीं थक कर अचानक मौत मांगूंगा 
मेरी ये आखिरी ख्वाइश समझ कर माफ़ कर देना |
ये जो इल्जाम तुमने बेवजह मुझ पर लगाये हैं 
.....गुनाहों का पुलिंदा खोल कर इन्साफ कर देना ||

निहारा ताज को जिसने- कहा सुन्दर बनावट है 
किसी ने यह नहीं सोचा दफ़न उसमे मोहोब्बत है ||.........मनोज

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Comment by Saurabh Pandey on February 18, 2013 at 7:38pm

आत्म-कथ्यात्मक अंदाज़ में आपकी रचना अच्छी लगी.

तुकांत के क्रम में आपने प्रयोग किया है तो यही निवेदन करना चाहूँगा कि ऐसे तुकांत उचित नहीं हैं.

हार्दिक शुभकामनाएँ.. .  शुभेच्छाएँ.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 7:24pm

निहारा ताज को जिसने- कहा सुन्दर बनावट है 
किसी ने यह नहीं सोचा दफ़न उसमे मोहोब्बत है ||-   सुन्दर, बधाई श्री मनोज नौटियाल जी 

Comment by mrs manjari pandey on February 18, 2013 at 7:12pm

 आदरणीय मनोज जी "  दिया अब सब्र का भी बुझ   रहा अंतिम बगावत है। "  बहुत खूब कहा आपने। हार्दिक शुभकामनायें।

Comment by Meena Pathak on February 18, 2013 at 7:07pm

बहुत बहुत सुन्दर ... बधाई आप को 

Comment by Abhinav Arun on February 18, 2013 at 6:25pm
बढ़िया नज़्म ,इस रवानी के लिए बहुत बधाई
Comment by ram shiromani pathak on February 18, 2013 at 5:43pm

बहुत खूब manoj  जी ..बधाई स्वीकारें 

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