For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पर्वत पिघलने से रहा

यहां कोई क्रांति नहीं होने वाली

लाख हो-हल्ला हो

धरने और अनशन हों

 

क्रांति की सामग्री मौजूद नहीं यहां

जाति, धर्म, क्षेत्र में बंटे

लोग क्रांति नहीं करते

अपने पेट की फिकर में परेशान

लोग आंदोलन नहीं करते

सत्ता को राजा की तरह पूजने वाले लोग

परिवर्तन नहीं लाते

 

वर्जनाओं की आदत पड़ चुकी

सीमित साधनों में जीना स्वीकार कर चुके हैं

पैदा होते ही आत्मसात कर लिया

हम जनता हैं

हमें ढोना है एक उम्र

जिंदगी नहीं

 

गांधी के बंदरों की तरह

न हम देखते हैं

न सुनते हैं

न बोलते हैं

 

जो छिटपुट शोर-शराबा होता है

वह कुछ लोगों का शगल भर है

कुछ खाली लोगों का टाइमपास

कुछ धनाढ्य का शौक

कुछ सिरफिरों की सनक

 

अखबारों में फोटो छपने के बाद

सबकुछ शान्त

अपने जीवन के पुराने रंग में

फिर रंग जाते हैं सब

 

मोमबत्तियां जलाकर

न कभी जनता जगाई जा सकी

न सत्ता को विरोध का एहसास होता है

 

कुछ आकृतियों में

सजाकर रखी गयीं

मोमबत्तियां

देखने में सुन्दर दिखती हैं

आखिर

केवल दीवाली में ही

जलाने के लिए नहीं होती मोमबत्तियां

 

कुछ नारे भी हवा में गूंजते हैं

कुछ गीत गुनगुनाए जाते हैं

कुछ गज़लें भी गायी जाती हैं

दुष्यन्त कुमार की

बिना उनका मतलब समझे

 

लेकिन अगर

पीर पर्वत सी हो गयी

तो पिघलेगी कैसे

उसके लिए आंच कहां है

मोमबत्ती की गरमी से तो

ये पर्वत पिघलने से रहा।

                     - बृजेश नीरज

 

Views: 425

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 11:12am

मन के आक्रोश को सही शब्द दिए हैं आपने पीर पिघलाने के लिए मोमबत्ती नही मशाल,ज्वालामुखी की जरूरत है हमे ही जलानी है
गाँधी जी के तीन बंदर बनकर कैसे काम चलेगा बहुत प्रभावशाली रचना हेतु बधाई ब्रजेश जी

Comment by बृजेश नीरज on February 18, 2013 at 7:03pm

आपकी टिप्पणियों के लिए धन्यवाद! आपका मार्गदर्शन अपनी रचनाओं पर सदैव चाहुंगा।
सादर।
बृजेश

Comment by Parveen Malik on February 18, 2013 at 11:33am

लेकिन अगर

पीर पर्वत सी हो गयी

तो पिघलेगी कैसे

उसके लिए आंच कहां है

मोमबत्ती की गरमी से तो

ये पर्वत पिघलने से रहा। 

आदरणीय बृजेशजी सुन्दर व्यंग ... बधाई 

Comment by vijay nikore on February 18, 2013 at 8:41am

आदरणीय बृजेश सिंहजी,

 

मार्मिक अभिव्यक्ति, सुन्दर कटाक्ष।

बधाई।

 

विजय निकोर

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 18, 2013 at 8:22am

सामयिक हालातों पर अंतःकरण की पीड़ा को बयान करती सुन्दर रचना आदरणीय ब्रजेश नीरज जी सादर बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 17, 2013 at 10:19pm

मोमबत्तियां जलाकर
न कभी जनता जगाई जा सकी
न सत्ता को विरोध का एहसास होता है

ग़ज़ब !

समाज की अन्यमनस्कता के विरुद्ध कवि की झुंझलाहट समझ में आती है. उसे निरुपाय होना बर्दाश्त नहीं. कवि का अंदेसा, कि उद्येश्य भले सार्थक हो यदि माध्यम का संयोजन और माध्यम का पैनापन विन्दुवत न हुए तो सारा कुछ निरर्थक है, पाठक को झकझोरता हुआ उससे हामी लेता है. यह तथ्यपरक कविता बहुत संभावनाएँ जगाती है.

आपका हार्दिक स्वागत है, बृजेश सिंहजी.

Comment by Tushar Raj Rastogi on February 17, 2013 at 8:27pm

बहुत सटीक कटाक्ष | यहाँ सच में कुछ नहीं होने वाला |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on February 17, 2013 at 5:43pm

मोमबत्ती की गरमी से तो

ये पर्वत पिघलने से रहा।

 बहुत खूब. 

बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on February 17, 2013 at 1:14pm

गणेश जी आपका आभार! आपकी टिप्पणी ने लिखने का साहस बढ़ाया।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 17, 2013 at 12:20pm

//

लेकिन अगर

पीर पर्वत सी हो गयी

तो पिघलेगी कैसे

उसके लिए आंच कहां है

मोमबत्ती की गरमी से तो

ये पर्वत पिघलने से रहा।//

किस अंधेरे कोने में ढ़केल दिया आपने , सच वहाँ से कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, किन्तु इसी अँधेरे में रौशनी की तलाश करनी होगी वरना गांधी जी के बन्दर नहीं अपितु सिर्फ बन्दर बन कर रह जायेंगे , बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय ब्रिजेश जी , इस कठोर किन्तु मार्मिक अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
3 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
5 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service