For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शब्‍द,
तेरी गंध
बड़ी सोंधी है
तेरी देह,
बड़ी मोहक है
अपनी उपत्‍यका में
एक मूरत गढ़ने दोगे ?
देखो न,
तेरे ही आंचल का
वह विस्मित फूल
मोह रहा है मुझे
और मेरे बालों में
अंगुली फिराती
बदन पर हाथ फेरती
मुझे सिहराती
सजाती, सींचती
वो तुम्‍हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्‍छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं बेसुध सा
अपना सबकुछ
तुम्‍हारे आंगन रख आता हूं,
कितने ही मर्मभेदी हथौड़े
मुझे पेशगी में
कुछ कीलें दे जाते हैं ।

Views: 676

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:26am

एक पुरूस्कृत रचना पर आगे कहने को कुछ नहीं रह जाता सिवा उसे पढ़ने और आनन्द उठाने के। मन मोहक! अप्रतिम! बधाई!

Comment by Abhinav Arun on February 26, 2013 at 10:31am

संकेतों से बहुत कुछ कह जाने से आगे की रचना इस गठन और गुम्फन के लिए हार्दिक बधाई कबूलें राजेश जी !

मेरी प्रतिच्‍छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं बेसुध सा
अपना सबकुछ
तुम्‍हारे आंगन रख आता हूं,
कितने ही मर्मभेदी हथौड़े
मुझे पेशगी में
कुछ कीलें दे जाते हैं ।
बहुत बधाई चमत्कृत करती है ये कविता !! उम्दा भाव !!!
Comment by Savitri Rathore on February 21, 2013 at 11:33pm

v.nice.

Comment by ajay yadav on February 19, 2013 at 9:19pm

बहुत खूबसूरत रचना |बधाई |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on February 17, 2013 at 5:45pm

 मैं बेसुध सा
अपना सबकुछ
तुम्‍हारे आंगन रख आता हूं,
कितने ही मर्मभेदी हथौड़े
मुझे पेशगी में
कुछ कीलें दे जाते हैं ।

 आदरणीय राजेश जी 

सादर 

बधाई 

Comment by vijay nikore on February 16, 2013 at 2:28pm

आदरणीय राजेश जी,

 

आपकी इस सुन्दर कविता का मैंने रसास्वादन किया था,

पर खेद है कि न जाने कैसे प्रतिक्रिया लिखनी रह गई।

आपको मेरी ओर से ढेर बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 15, 2013 at 12:11am

आदरणीय श्री राजेश जी आप की इस  रचना  को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना पुरस्कार के रूप मे सम्मानित किये जाने पर हार्दिक बधाई...आप की ये साहित्यिक यात्रा यों ही अनंत की तरफ अग्रसारित होती रहे शुभ कामनाएं 

वो तुम्‍हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्‍छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,.....सुन्दर भाव अनोखा रूप 

भ्रमर 5 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 13, 2013 at 2:13pm

कविता विचारों को शब्दरूप देने का अभिनव माध्यम है. भावनाओं और विचारों की प्रतीति भौतिक रूप से होने लगे तो उनकी सान्द्रता और आवृति चकित होने का कारण होती हैं. कवि इस रचना में सूक्ष्म और स्थूल के मध्य होते अंतःपरिवर्तन को बखूबी प्रस्तुत करता है. यह आत्मनिष्ठा और आत्ममुग्धता का एक प्रतिरूप अवश्य हो, भावानुभूति का चरम भी होता है. कवि के संदर्भ से यह भावानुभूति ही प्रतीत होती है. तभी वह ’होम करते हाथ जले’ के चिंतन के साथ उपस्थित होता है.

आदरणीय राजेश झाजी, इस विशिष्ट रचना हेतु आपको हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2013 at 2:37pm

बहुत ही सुन्दर भाव सुन्दर अभिव्यक्ति, दिल को छू गयी, बहुत  बहुत बधाई भाई श्री राजेश कुमार झा जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 4:32pm

आदरणीय योगी सारश्‍वत जी एवं सुमन मिश्रा जी, रचना का संज्ञान लेने और हमारा मान बढ़ाने के लिए आभारी हूं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
10 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
12 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
48 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service