For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "मिटती नहीं वो दीप तो कितने जला दिए"

==========ग़ज़ल==========

बहरे मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ
वजन ==221  /2121/ 1221 /212


हमसे मिला निगाह महज मुस्कुरा दिए
आँखों में कुछ हसीन से सपने सजा दिए 

करते हो हमसे इश्क या हमदर्द हो मेरे
पूछा कभी तो शर्म से पलकें झुका दिए

वादा किया था साथ निभाने का उम्र भर 
रुखसत के वक़्त आ के वो वादा निभा दिए 

नज़राना क्या दें आपको ठहरे गरीब हम
चाहत निभाने अश्क के मोती लुटा दिए 

तोड़े सभी रिवाज सभी रश्म तोड़ दी  
सारे उसूल इश्क की खातिर मिटा दिए 

फुरकत के वक़्त आपसे आईं यूँ गर्दिशें 
मिटती नहीं वो दीप तो कितने जला दिए 

संदीप पटेल "दीप"

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लतीफ़ ख़ान on January 17, 2013 at 10:32pm

जनाब संदीप जी ,,,ग़ज़ल के लिए बधाई ,,, कोशिशें हमेशा कामयाब होती हैं ,,, मशक करें ,, इस्लाह लें | आदरणीय सौरभ जी ने जो कमेंट्स दिए हैं उस पर अमल करें | यह शेर अच्छे बन पड़ें हैं ,,,,,१ नजराना क्या दें ,,,,२,तोड़े सभी रिवाज ,, पुन: बधाई ,,,,,

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2013 at 8:26pm

खूबसूरत ग़ज़ल......

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:08pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल .........

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 17, 2013 at 4:02pm

बहुत बहुत शुक्रिया आपका अनंत भाई सादर आभार

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 11:33am

मित्रवर छा गए आप, लाजवाब ग़ज़ल कही है वाह वाही के हकदार हैं आप दिली दाद हार्दिक बधाई.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 16, 2013 at 3:49pm

आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी सादर चरण स्पर्श 
सर्वप्रथम तो आपका बहुत बहुत आभार जो आपने शिष्य ग़ज़ल पर अपनी दृष्टि डाली और हौसलाफजाई की 
तत 
गुरुदेव कहीं न कहीं कुछ त्रुटियाँ जल्दबाजी की वजह से हो ही जाती हैं 
ग़ज़ल कहने के लिए 
पहले एक शेर कहो 
फिर उस शेर के वजन को बहर की कसौटी पर कसो 
फिर वजन के आधार पर जिहाफों का नामकरण 
थोड़ा कठिन  है 
मैंने नाम सही लिखा लेकिन अंत में सब गुड गोबर हो गया  
गुरुदेव अब मैं जिहाफों को भी याद करूंगा ताकि आगे ऐसी  गलती नहीं हो 
अपना आशीर्वाद और  स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 16, 2013 at 3:49pm

आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी , आदरणीया डॉ प्राची जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी ,  आदरणीय आशीष भाई जी सादर प्रणाम

ग़ज़ल के अशआर आपको भाये कहन सार्थक हुई 
इस जर्रानवाजी के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 16, 2013 at 10:11am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रिय संदीप जी, हर एक शेर दिल को छू रहा है, 

और ये वाला शेर

 करते हो हमसे इश्क या हमदर्द हो मेरे 
पूछा कभी तो शर्म से पलकें झुका दिए ...

तो बस वाह वाह ,

हार्दिक बधाई क़ुबूल करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 16, 2013 at 9:26am

फिर से एक सुन्दर ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2013 at 12:21am

करते हो हमसे इश्क या हमदर्द हो मेरे
पूछा कभी तो शर्म से पलकें झुका दिए  .........  वाह भाई वाह ! क्या अंदाज़ है !

फुरकत के वक़्त आपसे आईं यूँ गर्दिशें 
मिटती नहीं वो दीप तो कितने जला दिए..   .. मक्ता में तखल्लुस का सुन्दर प्रयोग हुआ है..

दाद कुबूल करें.

और बह्र के वज़्न को कैसे लिखा है ?

यह   221  2121 1221 212  की तरह होगा.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
17 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय बृजेश कुमार जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं आपके कथन का पूर्ण समर्थन करता हूँ आदरणीय तिलक कपूर जी। आपकी टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. दयाराम मेठानी जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. बृजेश कुमार जी.५ वें शेर पर स्पष्टीकरण नीचे टिप्पणी में देने का प्रयास किया है. आशा है…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपकी विस्तृत टिप्पणी से ग़ज़ल कहने का उत्साह बढ़ जाता है.तेरे प्यार में पर आ. समर…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service