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शिक्षित बनो ,

शिक्षा का विस्तार करो !

परतंत्रता के  जंजीरों से मुक्त हो ,

नए विचारों का स्वागत करो !

 

सृष्टि का मूल हो तुम ,

अपना महत्व समझो ,जानो !

मूक बन अब न सहो 

उठो, बोलो 

विश्व को अपने विचारों से अवगत करो !

 

इस विश्व के कुत्सितता को 

शिक्षा का सूरज बन मिटाओ !

नयी सुबह लाओ !

 

स्वच्छ मानसिकता से युक्त मानव का निर्माण करो !

इस परिवर्तन के मार्ग में बाधाए आएँगी 

उनसे न डरो , आगे बढ़ो !

 

समीप है वह दिन 

जब सब कहेंगे ,आहा ! यह विश्व  है मनभावन  !

और गर्व से कहोगी तुम ,

   हाँ ! मैं जननी हूँ 

              मैंने  किया है इस  नव विश्व का सृजन !                      अन्वेषा ............

 

 

वर्तमान में आज जो भी घटित हो रहा, समाचार पत्र, दूरदर्शन और इन्टरनेट के माध्यम से  इस पर काफी वाद -विवाद चल रहा है ! उसका हल सिर्फ कानून लागु करने से नहीं हो सकता ! हर एक स्तर पर शिक्षा की जरुरत है, हर एक स्त्री का शिक्षित होना जरुरी है ताकि हर माँ अपने बच्चे को शिक्षित कर सके और एक मानसिक रूप से स्वस्थ मानव की रचना कर सके , तभी हम एक सुंदर विश्व की कल्पना कर सकते है !

 

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Comment

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Comment by Anwesha Anjushree on February 6, 2013 at 6:34pm

Saurabh ji aapka ishara kis bindu ko tha., maine samjha hai...bus baat yeh hai ki aapka aur mera najariya kaafi alag hai...we all r individuals and its not possible to have same thinking...so it wud be  better if  I respect ur thinking and U do mine....Thanks for commenting Sir 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2013 at 6:02pm

अन्वेषाजी, आपने मेरे कहे के सिरे को सही पकडा है. इसी विन्दु की तरफ़ इशारा था.

सादर

Comment by Anwesha Anjushree on January 16, 2013 at 5:14pm

 //दुष्कर्म करने वाले लोग या तो अशिक्षित घरो के होते है या ऐसे घरो के जहाँ स्त्री का सम्मान नहीं होता //

सौरभ जी, आमतौर पर मैंने देखा है तीन तरह के लोग दुष्कर्म में लिप्त होते है ! 
1. अशिक्षित बेरोजगार , जो दुनिया से दुखी और असंतुष्ट होते है !
2. मानसिक रूप से जो स्वस्थ नहीं होते !
3. या फिर "समृद्ध" परिवार से युक्त --
  समृद्ध किन्हें कहते है ? धन से संपन्न लोग हमेशा समृद्ध नहीं होते। मैंने ऐसे घरों को भी देखा है जहाँ धन तो है, संस्कार नहीं ! लोग महिलाओं को " comodity " की तरह समझते है ! "समृद्ध" कहे जाने वाले ऐसे घरों में पैसे की भरमार होती है , यहाँ  जनम लेकर जो बड़े होते है वे घर में भी महिलाओ का असम्मान करना सीखते है ! उन्हें  अनियंत्रित जीवन की आदत होती है ! वे सामान्य जीवन और उसकी जरूरतों से वाकिफ नहीं होते ! उन्हें न नौकरी की जरुरत होती है, न उनके लिए कानून का डर होता है ! उनके पास धन होता है और उससे वो सब खरीद पाने का ख्याल रखते है !  आपने जिन नामो का जिक्र किया, ध्यान दे ये लोग उसी " समृद्ध " परिवार से है !

एक स्वस्थ दिमाग , स्वस्थ जीवन का निर्माण शिक्षा और संस्कार ही दे सकता है ! और मनुष्य को प्रथम शिक्षा तो माँ से ही मिलता है ! एक सुसंस्कृत माँ के प्रभाव को इनकार नहीं किया जा सकता ! माँ शिक्षित होने से धन से धनी घर संस्कार से भी  समृद्ध होता है ! बच्चे शिक्षित होते है और बेरोजगारी या तो नहीं रहती या उसका हल निकल आता है  !  

मानसिक रूप से अस्वस्थ मनुष्य को तो कानून भी दोषी नहीं ठहराता !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2013 at 10:43pm

//आप देखेंगे की दुष्कर्म में पकडे जाने वाले ज्यादातर अशिक्षित घर से होते है  या ऐसे घरो से होते है जहाँ स्त्री का सम्मान नहीं होता।//

ऐसा हमेशा नहीं है, अन्वेषाजी.  यह एक विशेष मानसिकता के तहत होता है. अभी जो कुछ काण्ड तुरत दिमाग़ में आ रहे हैं वे मधुमिता या जेसिका या नुपूर या बिहार की अति प्रसिद्ध बेबी के काण्ड या नागमणी प्रसंग आदि याद आ रहे हैं. यह अत्यंत समृद्ध घरों से ताल्लुक रखते लोगों से संबंधित हैं. 

Comment by Anwesha Anjushree on January 15, 2013 at 5:35pm

बागी जी , राजेश कुमारी जी , अशोक कुमार जीजी, संदीप कुमार जी ...आप सभी ने पसंद किया ...बहुत बहुत शुक्रिया !


सौरभ जी ,आपके सुझाव का शुक्रिया।  युगों से भारत में महिलाएं प्रताड़ित ही हुई है ! राम राज्य कहे या आज का राज, कुछ खास फर्क है कहाँ ?  मानसिक यातनाएं, बलात्कार, शारीरिक यातनाये, दहेज़ के लिए जलाना  अब रोज की बात हो गयी है,  मैंने  समाधान ढुंढने का प्रयत्न किया  है ! आज जहाँ भी पढ़ती हूँ  लोग सिर्फ हाय हाय करते नजर आते है, समाधान की बात तो कोई करता ही नहीं ! अगर कुछ कहते है तो बस यह की कानून बदलो ! जब की सच्चाई यह है की आज संस्कार का अभाव साफ़ नजर आता है ! आप देखेंगे की दुष्कर्म में पकडे जाने वाले ज्यादातर अशिक्षित घर से होते है  या ऐसे घरो से होते है जहाँ स्त्री का सम्मान नहीं होता। एक शिक्षित माँ का प्रभाव  एक शिशु के लिए बहुत आवश्यक है। मैं एक शिक्षिका हूँ और  मैंने यह देखा है माँ के अशिक्षित होने से बच्चे के आचरण में फर्क दीखता है ! बयानबाजी तो नेता करते है, मैंने तो सीधी बात की ! हाँ, जोश के साथ कही है  और कुछ करना भी चाहती हूँ और कर भी रही हूँ ! नमन 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 4:07pm

समीप है वह दिन 

जब सब कहेंगे ,आहा ! यह विश्व  है मनभावन  !

और गर्व से कहोगी तुम ,

   हाँ ! मैं जननी हूँ 

   मैंने  किया है इस  नव विश्व का सृजन !    
वाह 
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई आपको

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2013 at 11:17am

प्रबुद्ध विचारों से जन्मी इस रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद, अन्वेषाजी.  रचना के भाव और उद्येश्य बहुत ही सकारात्मक हैं. इसकी प्रस्तुति को सीधी-सपाट बयानबाज़ी से थोड़ा बचाना था. लेकिन यह भी सत्य है कि परिस्थितिजन्य भाव कभी-कभी इंगितों में नहीं मुखर हो कर ही असरदार हुआ प्रतीत होते हैं. इस लिहाज़ से आपकी रचना उचित भी बन पड़ी है.

समीप है वह दिन
जब सब कहेंगे ,आहा ! यह विश्व है मनभावन !
और गर्व से कहोगी तुम ,
हाँ ! मैं जननी हूँ
मैंने किया है इस नव विश्व का सृजन !

सकारात्मक सोच और शुभ स्वप्न की भावनाओं को उत्सर्जित करती उपरोक्त पंक्तियाँ इस रचना की आत्मा हैं.

शुभकामनाएँ व बधाई

एक बात : विश्व को अपने विचारों से अवगत करो  के स्थान पर विश्व को अपने विचारों से अवगत कराओ उचित वाक्य होगा न ! दूसरे, किसी शब्द में ’ता’ प्रत्यय जुड़ जाय तो वह संज्ञा स्त्रीलिंग की तरह व्यवहृत होती है. प्रयुक्त शब्द कुतिस्तता  के लिए ऐसा कह रहा हूँ. 

सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 11:18pm

सुन्दर रचना आदरेया, सच है आज संसकारों कि शिक्षा कि जरूरत बहुत शिद्दत से कि जा रही है. बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2013 at 7:07pm

सीधे मन से निकले सार्थक आशावादी भाव से सराबोर इस रचना हेतु बधाई घर से ही नव समाज नव विश्व की नींव रखी  जाए 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 4:13pm

और गर्व से कहोगी तुम ,
हाँ ! मैं जननी हूँ
मैंने किया है इस नव विश्व का सृजन !

वाह वाह, क्या बात कही है आदरणीया, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा, बात तो सही है , सुधार अपने घर से होना चाहिए, किन्तु यह भी सही है कि, जहाँ राम वहाँ रावण, जहाँ कृष्ण  वहाँ कंस और साधु के संग शैतान भी जन्म लेते रहे हैं ।

एक अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया ।

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