For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Anwesha Anjushree's Blog (13)

किसकी सदा ?

आईने में एक प्रतिबिम्ब

खड़ा है मौन !

आँखों के पीछे से

आवाज आई - कौन ?

है कौन यह अपरिचित?

क्या है यह अपना मीत ?

यह कैसी है संवेदना?

यह किसकी है सदा ?…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on February 3, 2013 at 7:00pm — 11 Comments

मंजुल धरा ...

हल्की- सी पवन क्या चली..

पीपल के बातुनी पत्तों की बातें ही चल पड़ी !

नीम के पत्ते थोड़े से अनुशासन में रहकर हिले ,

और सखुए के पत्तों ने..

पवन के पुकार की कर दी अनसुनी !

चिड़ियों की शुरू हुई चहल पहल..

सबसे छोटी चिड़िया ने की पहल ,

काम कम पर शोर ज्यादा ,

सारे भुवन में उसने मचाई हलचल !

तिमिर ने अपना आँचल समेटा ,

रवि ने ली जम्हाई,

तारे भी थके से थे,

उन्होंने अपनी बाती बुझाई !

शशि को तो मही से है प्रेम ..

वह तो है अलबेला…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on February 3, 2013 at 7:00pm — 10 Comments

नया विश्व ..

शिक्षित बनो ,

शिक्षा का विस्तार करो !

परतंत्रता के  जंजीरों से मुक्त हो ,

नए विचारों का स्वागत करो !

 

सृष्टि का मूल हो तुम ,

अपना महत्व समझो ,जानो !

मूक बन अब न सहो 

उठो, बोलो 

विश्व को अपने विचारों से अवगत करो !

 

इस विश्व के…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on January 13, 2013 at 9:38pm — 10 Comments

इस आसमान पर अधिकार तुम्हारा भी है...

ईश की अनुपम कृति मानव

और उसकी जननी तुम

फिर क्यों हो प्रताड़ित , अपमानित

पराधीन, मूक , गुमसुम ?

खुश होना तो कोई पाप नहीं

मुस्कुराने की इच्छा स्वार्थ नहीं!

नए विचारों की उड़ान भरो

शिक्षा का स्वागत करो !

जीवन न जाय व्यर्थ यूँ ही...

सदियों के बंधन से मुक्ति चाहिए ?

विद्रोह तो होगा, न घबराओ

निर्भय बनो, मानसिक सबलता लाओ !

रात बहुत गहरी हो चुकी

भोर का संदेसा दे चुकी !

मुस्कुराओ, पंख फैलाओ

उड़ने को तैयार हो जाओ

क्योंकि

इस आसमान पर…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on January 7, 2013 at 6:00pm — 5 Comments

मेरा परिचय .

समय से परे, अगर जो कभी हम मिले

अलग से ही कुछ नाम से

अलग से ही रंग-रुप में

क्या तुम मुझे पहचान लोगे?



शायद मेरा स्पर्श या हृदय का स्पन्दन अलग हो,

मेरी बोली, मेरी अभिव्यक्ति अलग हो,

मेरा चेहरा या मेरे भाव अलग हो,

क्या तुम मुझे पहचान लोगे?



गर पवन बन मैं छु लूं तुम्हे,

या वृष्टि बन तुम्हारे रोम-रोम को भिगाउँ ,

नीर…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on December 17, 2012 at 5:00pm — 7 Comments

एक भिक्षुक की याचना .....

मुझे जानो समझो
पर इतना न झकझोरो
कि मैं नग्न हो जाऊं
अपमानित फिरू !

यह जो पाने, न पाने के दायरे है
तुम्ही कहो, इन्हें मैं कैसे तोडू ?
अगर मुझे पूर्ण न कर सको
तो न समझने का भान करो !
पर इतना भी न झकझोरो
कि मैं नग्न हो जाऊं
अपमानित फिरू !
अन्वेषा....
हम सब के ह्रदय में कही न कही एक भिक्षुक छुपा हुआ है !

Added by Anwesha Anjushree on December 16, 2012 at 9:00am — 10 Comments

मुक्ति.....

सौम्य शांत सी चली थी
निंद्रा से चिर निंद्रा की ओर
उसे निंद्रा से जगाने की कोशिश थी
थी भाग दौड़ !
उम्र भर की मानसिक यातना से
थी आज मुक्ति की ओर अग्रसर ,
अस्पताल के एक कोने में उसका
शरीर था पड़ा एक बिस्तर पर ,
बैठी थी पास ही उसके
उसकी बिटिया मूक दर्शक बनकर ,
रही थी माँ को एकटुक निहार !
और जैसे कह रही हो बारम्बार...
माँ, तुझे न रोकूंगी आज
ले लो मुझसे मुक्ति का उपहार !

अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 15, 2012 at 4:00pm — 8 Comments

असीमित ...

व्यस्त फुटपाथ की तपती फर्श पर ,
तपती धूप की किरणों से ,
जलते शरीर से बेखबर,
मक्खियों की भीड़ से बेअसर ,
फटे-गंदे कपड़ो से लिपटे
भूखे पेट, एक माँ बच्ची के साथ
बेसुध सो रही ...
कही सामाजिक अव्यवस्था तो..
कही नियति ही सही,
पर मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की
कोई सीमा भी तो नहीं !!! अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 4:00pm — 11 Comments

मन...

मन ही सवालों से उलझता है !
मन ही सवालों से कतराता है !
मन ही दर-बदर भटकता है!
मन ही भूलने की बात करता है !
झगड़ता है, चिल्लाता है , कोसता है!
यह मन ही तो है जो रोता है !
अनुभव है ,सच नहीं है,
जाने भी दो, जिंदगी है ,
समझकर सबकुछ खुद को ,
समझाने की कोशिश करता है !
कुछ पल तो शांत बैठता है
और फिर अचानक -
मन ही मन कह उठता है
आह! खट्टे अंगूर !

अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 3:30pm — 9 Comments

उन्मुक्त

हसरते, अरमान

तिरस्कार, अपमान

इन्हें लक्ष्मण रेखा को न पार करने दो

या फिर इन्हें कैद करो ऐसे

यह सांस भी न ले पाए जैसे

और चाबी ऐसे दफनाओ

के खुद भी न ढुंढ पाओ

फिर उड़ो ,पंख फैलाओ…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on December 13, 2012 at 10:00pm — 6 Comments

साक्षात्कार

कान्हा से मिलोगी सखी ?

हँसते -खेलते राधा से कहा मैंने..

सदियों से प्रतीक्षा में बँधी

राधा बोली-हाँ सखी..पर कैसे ?





चल न सखी,छोड़ न

इस धाम ,इस वृक्ष को

चल चलके देखे कान्हा धाम

वे जरुर मिलेंगे तुझको !





ख़ुशी से झूम राधा

चली मिलने शाम को

मेरा मन हुआ गर्वित,सोचा-चलो

यह जीवन आया कोई काम तो !





पर!यह तो थे कृष्ण

कान्हा तो हमे मिले नहीं

राधा क्या गिला करती

राधा को कृष्ण जाने नहीं… Continue

Added by Anwesha Anjushree on September 29, 2011 at 4:46pm — 2 Comments

कुछ शब्द ..

शब्दों में खोकर कहते तुम

वाह ! यह कविता अच्छी है

या हँसकर कहते..

ओह ! क्या है यह? क्या तू बच्ची है ?

 

 

मेरे शब्दों में अपनी छवि

देख तुम इतराते !

नासमझ बनने की कोशिश में

बार बार हार जाते !

 

 

इन…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on September 27, 2011 at 4:37pm — 7 Comments

ध्रुवतारा ...

मेघ से आच्छादित नभ में

एकमात्र सुक्ष्म नक्षत्र से…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on September 13, 2011 at 4:51pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service