For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारे साथ ....

ओ तरुणी
मेरे आंसू
तेरे दुख
कम नहीं कर पाएँगे
मेरी संवेदनाएँ
तेरे जख्म नहीं भर पायेंगे 
तार -तार हैं सपने तेरे
रोम रोम में जहर भर गए
कुंठित होगा मन का कोना
घृणा के ज्वार पे तुम सवार
बदले की आग में भी जलोगी
ना कुछ करने की विवशता

आत्महत्या के लिए प्रेरित करेगी

ओ मेरी अनजान सखी 
एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना
गमो की पोटली मत ढोना
सच मानो
ईश्वर ने तुम्हें गर
नरक दिया है तो
स्वर्ग का रास्ता भी
कंही खुला रखा होगा
बस
हिम्मत मत हारना
तप कर तुझे

सोना बनना है


ओ दामिनी
कल तक
जो भी सपने थे तेरे
भूल उसे अब
आगे बढ़ना होगा
लाचार तुम नहीं
व्यवस्था पंगु है
पहचान अपनी शक्ति को
तुझे ध्रुव तारा सा चमकना होगा
पोंछ कर सारी तस्वीर
दे अपनी तरुणाई को
नया आधार
चुन नए पथ को
रख मजबूती से
अपने कदमो को 
नाप नया आकाश 
तुम जानो या ना जानो
मानो या ना मानो
हमारी दुआएं
है तुम्हारे आस पास 
तुम्हारे  साथ  /

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on August 1, 2013 at 6:25pm

सशक्त सामयिक सार्थक रचना कलम और कलमकार को नमन है !

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:43pm

आदरणीय भ्रमर सर . आपका हार्दिक आभार .. जगाना भी है और जागना भी है ..सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:42pm

आदरणीय अशोक सर . आपका हार्दिक आभार

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:41pm

आदरणीया राजेश दी .. आपका हार्दिक आभार . ईश्वर करें ऐसा ही हो ...

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:38pm

आदरणीय बागी जी .. बहुत -2 आभार

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 10:21pm

ओ मेरी अनजान सखी 
एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना
गमो की पोटली मत ढोना

महिमा जी मार्मिक दर्द उमड़ पड़ा चिंता मन को खाए जा रही है कहाँ जा रहा है हमारा देश ...न जाने कुम्भ्करनी नींद क्यों सब को होती जा रही है लोगों को जागना होगा 

पीडिता को संबल देती अनोखी रचना बधाई 
भ्रमर 5 

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 26, 2012 at 6:19pm

लाचार तुम नहीं
व्यवस्था पंगु है

सुन्दर रचना महिमा श्री जी. पीडिता को सम्बल देती रचना पर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 25, 2012 at 8:54pm

प्रिय महिमा श्री आशा का संचार कराती हुई दिल से निकली दुआ स्वरुप ये रचना दिल को छू गई जरूर हम सब की दुआ उस मासूम तक भी पंहुचेगी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2012 at 10:44am

//एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना//

आदरणीया महिमा जी, क्या कहने, शानदार अभिव्यक्ति है, बधाई स्वीकार करें |

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 5:42pm

नमस्कार महिमा श्री जी आपका सदैव स्वागत है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service