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तुम्हारे साथ ....

ओ तरुणी
मेरे आंसू
तेरे दुख
कम नहीं कर पाएँगे
मेरी संवेदनाएँ
तेरे जख्म नहीं भर पायेंगे 
तार -तार हैं सपने तेरे
रोम रोम में जहर भर गए
कुंठित होगा मन का कोना
घृणा के ज्वार पे तुम सवार
बदले की आग में भी जलोगी
ना कुछ करने की विवशता

आत्महत्या के लिए प्रेरित करेगी

ओ मेरी अनजान सखी 
एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना
गमो की पोटली मत ढोना
सच मानो
ईश्वर ने तुम्हें गर
नरक दिया है तो
स्वर्ग का रास्ता भी
कंही खुला रखा होगा
बस
हिम्मत मत हारना
तप कर तुझे

सोना बनना है


ओ दामिनी
कल तक
जो भी सपने थे तेरे
भूल उसे अब
आगे बढ़ना होगा
लाचार तुम नहीं
व्यवस्था पंगु है
पहचान अपनी शक्ति को
तुझे ध्रुव तारा सा चमकना होगा
पोंछ कर सारी तस्वीर
दे अपनी तरुणाई को
नया आधार
चुन नए पथ को
रख मजबूती से
अपने कदमो को 
नाप नया आकाश 
तुम जानो या ना जानो
मानो या ना मानो
हमारी दुआएं
है तुम्हारे आस पास 
तुम्हारे  साथ  /

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on August 1, 2013 at 6:25pm

सशक्त सामयिक सार्थक रचना कलम और कलमकार को नमन है !

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:43pm

आदरणीय भ्रमर सर . आपका हार्दिक आभार .. जगाना भी है और जागना भी है ..सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:42pm

आदरणीय अशोक सर . आपका हार्दिक आभार

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:41pm

आदरणीया राजेश दी .. आपका हार्दिक आभार . ईश्वर करें ऐसा ही हो ...

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:38pm

आदरणीय बागी जी .. बहुत -2 आभार

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 10:21pm

ओ मेरी अनजान सखी 
एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना
गमो की पोटली मत ढोना

महिमा जी मार्मिक दर्द उमड़ पड़ा चिंता मन को खाए जा रही है कहाँ जा रहा है हमारा देश ...न जाने कुम्भ्करनी नींद क्यों सब को होती जा रही है लोगों को जागना होगा 

पीडिता को संबल देती अनोखी रचना बधाई 
भ्रमर 5 

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 26, 2012 at 6:19pm

लाचार तुम नहीं
व्यवस्था पंगु है

सुन्दर रचना महिमा श्री जी. पीडिता को सम्बल देती रचना पर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 25, 2012 at 8:54pm

प्रिय महिमा श्री आशा का संचार कराती हुई दिल से निकली दुआ स्वरुप ये रचना दिल को छू गई जरूर हम सब की दुआ उस मासूम तक भी पंहुचेगी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2012 at 10:44am

//एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना//

आदरणीया महिमा जी, क्या कहने, शानदार अभिव्यक्ति है, बधाई स्वीकार करें |

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 5:42pm

नमस्कार महिमा श्री जी आपका सदैव स्वागत है.

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