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रेत में जैसे निशां खो गए

रेत में जैसे निशां खो गए

हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए

 

रात आँखें ताकती ही रहीं

मेहमां जाने कहाँ सो गए

 

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें

छोड़कर मझधार में खो गए

 

बोझ लेकर आपके पाप का

कांधे  में अपने उसे ढो गए

 

मिलने का वादा किया था मगर

हिचकियाँ देकर वो गुम हो गए

 

कौन आया है सदा के लिए

हम गए जो आज कल वो गए

 

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Comment

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Comment by rajluxmi sharma on December 10, 2012 at 10:25pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है...हार्दिक बधाई

Comment by नादिर ख़ान on December 7, 2012 at 11:27am

बहुत शुक्रिया अदरणीय प्राची जी 

बहुत  आभार ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2012 at 10:21am

आदरणीय नादिर खान जी,

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने.

मतला और पहला शेर ख़ास तौर पर बहुत पसंद आये....हार्दिक बधाई स्वीकार करे.

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 10:11pm

chandresh ji बहुत  शुक्रिया, आपने रचना को सराहा 

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 9:45pm

अदरणीय सौरभ जी सुझाओ के लिए बहुत शुक्रिया इसी तरह का मार्गदर्शन बनाये रखें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2012 at 7:34pm

यहाँ पर सो इसलिये लिया है कि, जिन्हे रहनुमाई सौपी थी वो सो गए  हमें मझधार मे छोड़ कर... वैसे इस सो गए  और खो गए ने हमें भी 2 दिन परेशान किया था

नादिर भाई, आपकी बात भी अपनी जगह सही है. मैं भी इस पर यथोचित सोचा कि सो गये  रहने दूँ या खो गये समीचीन होगा.

पूरा शेर यों है -

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझधार में सो गए ..........   एकबारगी पढने पर लगता है कि जिन्हें रहनुमाई सौंपी गयी थी वे सौंपने वालों को छोड़ कर  खुद मझधार में  जाकर सो गये.  जबकि यह अर्थ बिल्कुल नहीं है. इसी दुविधा को खत्म करने के लिए मेरा खो गये सुझाव था, जिसके अनुसार अब जिन्हें रहनुमाई सौंपी गयी थी वे सौंपने वालों को मझधार में छोड़कर खो गये या वे खुद ही मझधार में कहीं खो गये, चाहे जो समझा जाय, अर्थ दोनों ढंग में अपने हिसाब से वाज़िब निकलेगा. वैसे भाईसाहब, शेर आपका है.  :-))

शुभेच्छाएँ

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 6, 2012 at 6:52pm

बहुत खूब नादिर खान जी | बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है |

 

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें

छोड़कर मझदार में सो गए

 

बोझ लेकर आपके पाप का

कांधे  में अपने उसे ढो गए

क्या बात है जनाब ||

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 4:18pm

महिमा जी  आपका बहुत शुक्रिया आपने रचना को पसंद किया ।

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 4:17pm

अदरणीय सौरभ जी बहुत शुक्रिया आपने कोशिश को सराहा और आपके मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार

हमने मझधार की त्रुटि सुधार ली है ।

 सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझदार में सो गए  

यहाँ पर सो इसलिये लिया है कि, जिन्हे रहनुमाई सौपी थी वो सो गए 

हमें मझधार मे छोड़ कर... वैसे इस सो गए  और खो गए ने हमें भी 2 दिन परेशान किया था ।

कृपया मार्गदर्शन दें 

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 3:39pm

कौन आया है सदा के लिए

हम गए जो आज कल वो गए....

बहुत खूब ... आदरणीय बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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