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महाभुजंगप्रयात सवैया :-
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नहीं रास आईं वफ़ायॆं किसीकॊ, अनॆकॊं चलॆ हैं उसी राह राही !!
किनारॆ खड़ॆ दॆखतॆ हैं तमाशा,हमारी वफ़ा का सिला यॆ तबाही !!
पुकारा कई बार था नाम लॆकॆ,खुदाकी सदां दॆ सकी ना गवाही !!
हुयॆ  फ़ैसलॆ हैं इशारॆ  इशारॆ, हमारी सज़ा सॆ  रज़ा  हैं  सिपाही !!

============================================

कवि:- "राज बुन्दॆली"

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 9:15am

चन्द्र शेखर जी, आप ओबीओ के भारतीय छंद विधान समूह में इस छंद के विधान की जानकारी ले सकते हैं

शुभ-शुभ

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 2, 2013 at 9:06am

गुणीजनों से अनुरोध है कि कृपया इस वार्णिक छन्द का शिल्प विधान वृहद रुप में समझाने की कृपा करें। साभार, जिज्ञासु, चन्द्र शेखर पान्डेय।

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 9:54pm

आदरणीय राज साहब

                   सादर, ब्लॉग में शायद पहलीबार ही महाभुजंगप्रयात सवैया देख रहा हूँ बहुत बढ़िया है कुछ सुझाव आदरणीय सौरभ जी ने दिए हैं अवश्य ही लेखन को उन्नत बनाने में सहायक होंगे. बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2012 at 11:13am

शिल्प पर आपका छंद अत्यंत सटीक ढंग से बैठा है, ताज बुन्दली साहब. इस हेतु हार्दिक बधाई.

कहन पर आपको कई एक दृष्टि से ध्यान देना उचित होगा. छंद के प्रथम पद में प्रयुक्त अनेकों   कैसा शब्द है भाई ? बहुवचन का भी बहुवचन होता है क्या ?

शुभ-शुभ

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