For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !

 

तुमसे  जो  चंद  बात में कुछ पल ठहर गया !

जरा  खबर  ना  हुई  बड़ा  लम्हा गुज़र गया !

 

अमृत  ही  पाने  को निकला था सफर पे मै !

पीछे  मधु  की  बूंदों  के  सारा  सफर गया !

 

हुनर-ए-जमात  यूं  तो  मेरे  भी  पास  थी !

दौर-ए-नुमाईश  में  मगर  सब  हुनर  गया !

 

जीत  के  हर  वक्त  में  बाजू-ए-यकीन था !

पर जो हारा दोष सब किस्मत पे  धर  गया !

 

कल  को  बनाने  में  सारी जिन्दगी गुज़री !

कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !

 

आरजू-ए-जिन्दगी  थी  क़यामत  दौर  तक !

पर  करम  ऐसे किए कि जीते जी मर गया !

 

                                                                                  -पियुष द्विवेदी ‘भारत’

 

Views: 625

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2012 at 9:28am

प्रिय पियूष जी, जो कुछ मैं कहना चाहता था उसे वीनस भाई कह चुके है, यदि आपका पहला प्रयास यह है तो मेरा दावा है कि आप बहुत आगे जा सकते है, आपमें संभावनायें बहुत है, बस प्रयास करें और इसी ग़ज़ल को २२१ २१२१ १२२१ २१२ पर बैठाने का प्रयास करें |

आसानी के लिए एक धुन बता देता हूँ , उसी धुन में आप इस ग़ज़ल को गुनगुनाइए .......

हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया ....

इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2012 at 12:56am

तुमसे  जो  चंद  बात में कुछ पल ठहर गया !

पियुष जी,
यह पहली पंक्ति ही आपके अंदर छुपे शायर को बज़्म में खड़ा करने के लिए पर्याप्त है जो जनकारों तक यह बात पहुंचा रही है कि आपमें अपार संभावना है
आपको बता दूं कि यह पंक्ति एक बहर जिसकी मात्रा २२१ २१२१ १२२१ २१२ पर बिलकुल फिट बैठ रही है

रदीफ काफिया का पालन भी आपने ब-खूबी किया है और कहन भी आपके पास दमदार है
बस बात बहर पर आ कर अटक रही है मगर पूरा विश्वास है कि ओ बी ओ मंच पर बने रहे तो यह अटकाव भी जल्द ही आपके प्रयासों के प्रवाह के आगे टिक नहीं सकेगा 
आने वाला कल आपना है बशर्ते आप मेहनत से जी ना चुराएं और तिलक जी की क्लास को मन लगा कर पढ़ें और समझें 
शुभकामनाओं सहित
सादर

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 11, 2012 at 10:10pm

धन्यवाद आदरणीय रक्ताले जी.......

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 8:17pm

पियूष जी

            सादर, गजल कि बहुत अधिक जानकारी नहीं है किन्तु सभी आशार बहुत सुन्दर लगे. बधाई स्वीकारें.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 11, 2012 at 12:24pm

बहुत बहुत धन्यवाद संदीप भाई जी....

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 11, 2012 at 12:18pm

आदरणीय पियूष जी सादर
आपके इस प्रयास को बहुत बहुत बधाई
आशा करता हूँ अगला प्रयास और भी अच्छा और सुखद होगा

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 11, 2012 at 12:02pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी.... आपको ये गज़ल बेहतर लगी, ये जानकार बहुत अच्छा लग रहा है ! बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद ! यूं ही स्नेहाशीष कायम रखें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2012 at 10:04am

कल  को  बनाने  में  सारी जिन्दगी गुज़री !

कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !------पूरी ग़ज़ल के साथ इस शेर के लिए विशेष दाद कबूल करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
22 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service