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"मैं और मेरा रावण"


इक अट्टहास... गूंजा...
पल को चौंक... देखा चारो ओर...
पसरा था सन्नाटा... ... ...
वहम समझ, बंद की फिर आँखें...
मगर फिर हुई पहले से भयानक, और ज्यादा रौद्र गूँज...
उठ बैठ... तलाशा हर कोना डर से भरी आँखों ने...
सिवाए मेरे और सन्नाटे के, ना था किसी का वजूद मगर...
तभी सन्नाटे को चीरती इक आवाज नें छेड़ा मेरा नाम...
कौन... ... ...???
बदहवास-सी... इक दबी चीख निकली मेरी भी...
तभी देखा... अपना साया... जुदा हो मुझसे...
आ खड़ा हुआ, मेरे सामनें... और बोला...
मैं हूँ... ... ... "तुम्हारा" रावण... ... ...!!

मेरा रावण... ... ...???
हाँ, तुम्हारे अन्दर बसा रावण...
तुम्हारे किये छोटे-छोटे कर्मों से जन्मा रावण...
जो बन रहा है शक्तिशाली... हर रोज़...
जो हर पल रहता है साथ तुम्हारे... साया बनकर...
तुम्हारा हर कर्म बना रहा है... इस साये को...
और गहरा... और गाढ़ा... और घना...
पुतले जलाकर मेरा अंत नहीं होता...
मैं तो आज भी जी रहा हूँ... तुम में...
और हर इंसान में...
गुज़रते दिनों के साथ बढ़ रही है मेरी उम्र...

मैं... भौचक... सुनती रही सब...
और बहते रहे मेरे पछतावे रुपी आंसू...
ना सिर्फ मेरी आँखों से... बल्कि आत्मा से भी...
पर तभी एक अनजान-सी शक्ति नें...
झिंझोड़ा मुझे... कहा...
उठ... कर दे फिर... इस बुराई का अंत...
ख़त्म कर दे इसे... जड़ से...
और मैंने... लपका...
अपने ही रावण बनते साये को...
कुछ अच्छे कर्मों और हिम्मत रुपी खंज़र से...
किया उसकी नाभि पे वार...
कर दिया धराशाई...
फिर एक और विशाल बुराई रुपी रावण को...
सच रुपी राम नें...
और सही मायनों में... हुआ फिर अंत...
इस कलयुग में...
मेरे रावण का... ... ...!!

::::::::जूली मुलानी::::::::
::::::::Julie Mulani::::::

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Comment

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Comment by Julie on October 20, 2010 at 7:44pm
बागी जी विजयदशमी की बधाई देर से देने के लिए माफ़ी चाहती हूँ... बहुत बहुत शुक्रिया मेरे खड़े किये रावण को समझने का... बधाई के लिए शुक्रगुजार हूँ...!! :-)
Comment by Julie on October 20, 2010 at 7:43pm
अरुण जी बहुत बहुत शुक्रिया आपकी बधाई का... और मेरी साधारण सी रचना को उत्कृष्ट कहने का...!! :-)
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 18, 2010 at 9:19pm
great expression in tight script...giving a sharp massage
Comment by Neelam Upadhyaya on October 18, 2010 at 10:06am
Bahut hi utkrisht rachana hai. Badhayee.
Comment by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 9:58am
uttam rachna.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2010 at 8:08pm
और सही मायनों में... हुआ फिर अंत...
इस कलयुग में...
मेरे रावण का... ...

बहुत ही खुबसूरत कृति, बधाई जुली , सही मायने मे आपने रावण को हम सबके सामने खड़ा कर दिया और वो भी इस चुनौती के साथ कि है दम तो जलावो इसे ! बेहतरीन अभिव्यक्ति पर बधाई साथ मे विजय दशमी कि शुभ कामना भी | जय हो !
Comment by Abhinav Arun on October 17, 2010 at 9:08am
अति सुंदर जूली जी ,सच कहा आपने अपने अंतस के रावण को पहचानने और उसका शमन करने की आवश्यकता है.उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई.

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