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गुरुओं से संसार है, गुरुवर शब्द विराट |
गुरु को पा के बन गया, चन्द्रगुप्त सम्राट ||

विद्या दो हे विद्यादाता | करूँ नमन नित शीश झुकाता ||
आन पड़ा हूँ शरण तिहारे | घने हुए मन के अँधियारे ||
दुखित ह्रदय नहीं दिखे उजाला | रोके रथ अज्ञान विशाला ||
कुछ न सूझे भरम है भारी | लागे मोहि मत गई मारी ||
दीन-हीन आया हूँ द्वारे | उर में आस की ज्योति धारे ||
ज्ञान मिलेगा यहाँ अपारा | निर्झरणी सम शीतल धारा ||
धार कलम की तेज बनाओ | कृपा करो सन्मार्ग दिखाओ ||
गुरुवर तुम ही हो उपकारी | लिये प्रेम का सागर भारी ||
भरो हमारे अन्दर ज्वाला | तेज लपट ऐसी विकराला ||
रूढ़िवादिता खाक करें हम | दुष्कर्मों का नाश करें हम ||
सिंह सम गरजें भरें हुंकारें | बनें शिवाजी छल को मारें ||
देश पुराने यश को पाए | दुनिया सादर शीश झुकाए ||
ऐसा वज्र बना दो हमको | ये संकल्प करा दो हमको ||
नवाचार की आँधी लाएँ | गुणी आपके शिष्य कहाएँ ||
मिले न कोई मुझ सम दूजा | मेरे कर्मों की हो पूजा ||
झूठ सदा नैनों में खटके | सत्य से कभी नहिं मन भटके ||
लावा ऐसा अन्दर फूटे | अन्यायी के सिर पर टूटे ||
किरपा इतनी चाहूँ तोसे | ज्ञानसागरों, विद्वजनों से ||
सिद्ध करो ये कारज मेरा | आ जाए इक नया सवेरा ||
किया भरोसा तुमपर जानो | विनती मोरी गुरुवर मानो ||

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 12:37pm

बहुत खूबसूरत  चौपाइयां कहीं हैं आपने आदरणीय कुमार गौरव  अजीतेन्दु जी
सादर बधाई स्वीकार करें इस अनुपम काव्य रचना हेतु

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 4, 2012 at 12:35pm

बहुत बढ़िया छंद गौरव जी बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2012 at 11:14am

गुरुजनों को समर्पित इस चौपाई छंद बद्ध सुन्दर सरस रचना हेतु बहुत बहुत बधाई कुमार गौरव जी.

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2012 at 10:42am

कुमार जी नमस्कार.

आज के वक़्त की पुकार करती रचना..........बहुत सुंदर..

फूल सिंह

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 4, 2012 at 7:05am

आदरणीय सतीश मापतपुरी सर........आपका दिल से आभार.......आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया से मन गदगद हो गया........शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 4, 2012 at 7:00am

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........चौपाई छंद से सम्बंधित एक और मूल्यवान तकनीकी जानकारी देने के लिए आपका आभारी हूँ.....शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.........

Comment by satish mapatpuri on September 4, 2012 at 1:49am

वाह ..... वाह ..... क्या बात है कुमार गौरव साहेब ... क्या बात है .गुरु - श्रद्धा में समर्पित एक अनुपम रचना . आपने धन्य कर दिया उस गुरु को ,जिसने आपको अक्षर बोध कराया होगा .  दिल से दाद दे रहा हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2012 at 11:25pm

भाई अजीतेन्दुजी, दोहे और चौपाई की युति में क्या ही प्रवहमान रचना प्रस्तुत किया है, आपने ! मन-हृदय बारम्बार झूम रहा है. वाह-वाह !

प्रस्तुत चौपाई तो तीन चार पंक्तियों के बाद ही इतनी प्रवाहमयी हो जाती हैं कि सस्वर पढ़ता चला गया.  सच में आनन्द आ गया. 

बहरहाल, निम्नलिखित पंक्तियों में थोड़ा और सुधार कर लें तो गेयता और सध जाये -

कुछ न सूझे भरम है भारी | लागे मोहि मत गई मारी ||
..
झूठ सदा नैनों में खटके | सत्य से कभी नहिं मन भटके ||

निम्नलिखित पंक्ति में मैं-कार खटक गया.  मैं के प्रति इतना आग्रह सनातनी नहीं है.

मिले न कोई मुझ सम दूजा | मेरे कर्मों की हो पूजा ||

इसे बहुवचन कर दें तो भाव सार्वभौमिक हो जायँ.  यथा --

मिले न कोई हम सा दूजा | अपने कर्मों की हो पूजा ||


हार्दिक शुभकामनाएँ. ..जय हो.. 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 10:50pm

आदरणीय गणेश सर........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 3, 2012 at 10:45pm

बहुत ही सुन्दर रचना, शिक्षक दिवस पर समर्पित इस छंद आधारित रचना पर बहुत बहुत बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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