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जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?
मैं जब सोचती हूँ तुम्हें
और खोती हूँ ,
तुम्हारे ख्यालों में ,
सपने सजाती हूँ नयनों में ,
और मुझे बहुत दूर जहाँ
के पार ले जाते है मेरे सपने
वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास
मैं नहीं खोलती अपना मुंह
फिर भी मैं बतयाती हूँ
फूलों से,तितलियों से, बहारों से
और तुमसे .
मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती हूँ तुमसे बातें ,
क्या यह नहीं है भाषा ?
और क्या भाषा बिना संभव है यह सब ????

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2012 at 10:51pm

नवल किशोर भाई, आपकी इस भाव-रचना ने अत्यंत प्रभावित किया है. शुभेच्छाएँ.. .

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 12:23pm
आपकी रचनाएँ लाजवाब होती ही हैं  यह भी है 
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2012 at 11:53am

मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती हूँ तुमसे बातें ,
क्या यह नहीं है भाषा ?
और क्या भाषा बिना संभव है यह सब ????
इसी को कहते हैं आत्मा से आत्मा का अप्रत्यक्ष वर्तालात/संवाद  जिसके तार आपस में जुड़े होते  हैं जो दिखाई नहीं देते जिनको समझाने के लिए किसी भाषा या शब्दों के भी जरूरत नहीं होती ----बहुत  अच्छे भाव छुपे हैं प्रस्तुति में बहुत बधाई |

 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 6:14pm
आदरणीय नवल किशोर जी! अतुकांत,मुक्त,निरंकुश होने के पश्चात भी मुक्तक कविता में उर्युक्त की कमी न खलना ही इसकी महानतम उपलब्धि है और आपकी कविता इसका अर्जन करती है,जो भूरिश: बधाई की पात्रा है।
वस्तुत: मौन की भाषा मौखिक या लिखित भाषा से अधिक प्रभावी होती है,और प्रेम के क्षणों में ये भाषा काफी कुछ कह जाती है न कहने के बावजूद।इसे मौन की भाषा कहे या मन की भी भाषा भी कह सकते हैं।
आपकी कविता ने काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है।पुनश्च एक सार्थक,सारगर्भित व गम्भीर रचना के लिए आपको बधाई।
सादर।
Comment by Naval Kishor Soni on August 31, 2012 at 5:23pm

आदरणीय प्रधान संपादक जी आपका और ओ बी ओ परिवार का बहुत बहुत धन्यवाद for featured my blog post.

Comment by Naval Kishor Soni on August 25, 2012 at 11:15am

प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया रेखा जी और सीमा जी .

Comment by Rekha Joshi on August 25, 2012 at 10:13am

मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती हूँ तुमसे बातें ,
क्या यह नहीं है भाषा ?
और क्या भाषा बिना संभव है यह सब ????,बहुत खूब ,अपने जज़्बात बयाँ बिन बोले भी कर सकते है ,अति सुंदर ,हार्दिक बधाई 

Comment by seema agrawal on August 24, 2012 at 8:21pm

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति नवल जी 

मौन संभाषण से सहज और सुरक्षित तो कोई और  संभाषण हो ही नहीं सकता इस मौन के सम्मान में कुछ प्रस्तुत है 

मौन ही को सुन रहा था आज मौन 
मौन की भाषा समझता और कौन
 

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