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चल चंदा उस ओर,
जहां नहाती प्रिया सुन्दरी थामें आंचल कोर ।

 
स्वच्छ चांदनी छटा दिखाना,
भूलूं यदि तो राह दिखाना।
विस्मृत हो जाये तन सुध तो,
देना तन झकझोर.........................।

 
मस्त बसंती हवा बहाना,
उसको प्रिय का पता बताना।
हवा तनिक भूले पथ जो,
कर देना उस ओर........................।

 
देख निशा गहराती जाती,
बुझती लौ घटती रे बाती।
लौ तनिक तेज करना,
भरना सुखद अजोर....................।

 
सनी नीर से लता माधवी,
यौवन पूर्ण प्रिया साधवी।
उसके बाल-व्यूह में उलझा,
अभिमन्यु-नयन किशोर............।

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2012 at 10:50am

//क्या गीत की मध्य पंक्तियों में भी मात्राओं का ध्यान रखना पड़ता है?//

निर्भर करता है कि आप किस तरह का गीत लिखने लगे हैं? यदि संगीतकार (रों) द्वार दिये गये नोट्स या मीटर पर किसी विषय विशेष पर गीत लिख रहे हों तो गीत की मात्राएँ उन नोट्स या दिये गये मीटर के हिसाब से गीत लिखा जाता है. जैसे फ़िल्मों में लिखा गये कई-कई बहुचर्चित गीत.

यदि आप शास्त्रीय गीत या नवगीत लिख रहे हैं तो फिर आप भले मात्राएँ अपने हिसाब से तय कर लें, लेकिन उन्हें मुखड़े से लेकर अंतरे तक निभना तो होगा ही.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 10:21am

हो सकता है मात्राओं के मिलान न होने की वजह से ही अटकाव आ रहा हो
लेकिन इस शानदार रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 24, 2012 at 10:05am

विन्ध्येश्वरी  जी बहुत ही प्यारा गीत लिखा है एक-एक शब्द दिल को झंकृत करता हुआ आगे बढ़ता है मुझे बहुत ही पसंद आया |

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 24, 2012 at 9:45am
आदरणीय आशीष जी सादर नमन!
उत्साहबर्द्धन हेतु हार्दिक आभार।
Comment by आशीष यादव on July 24, 2012 at 9:42am

आदरणीय जी, यदि काव्यात्मक दृष्टि से देखा जाय तो भी ये रचना सही है। मेरे खयाल से काव्य एवँ गीत मे विभेद नही करना चाहिये। और यदि हम विभेद नही करते हैं तो ये आपका काव्य स्वस्थ माना जायेगा।
यदि धुन पर गेयता देखी जाय तो त्रुटिपूर्ण नही लगता। क्योंकि आपने समान जगह समान मात्रायें लिखी हैं।
आदरणीय गुरुवरों की राय उचित समझूँगा। विस्तारित समझायें तो ज्ञान में वृद्धि हो सके।
सादर।

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 24, 2012 at 4:50am
आदरणीय गुरुजन द्वय निश्चित रूप से मेरे पास इस विषय का ज्ञान नहीं था।मैं तो बस यही समझता था कि पंक्ति जोड़ लेना ही काव्य है गीत है,आप दोनों ने मेरे ज्ञान का समबर्द्धन और क्षतिपूर्तनकर भक्त पर कृपा किया है।भक्त कृतकृत्य है,उपकृत है।
मैं जल्दी ही इसे दूर करता हूं।एक और प्रश्न-
क्या गीत की मध्य पंक्तियों में भी मात्राओं का ध्यान रखना पड़ता है?

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2012 at 12:30am

विंध्येश्वरीभाई,  आप द्वारा अभिव्यक्त दोनों विन्दु कमसेकम आपसे अपेक्षित नहीं थे. भाई, आप तो मात्रिक छंद रचते हैं. फिर मेरे इस कहे को कि,  आप पंक्तियों की मात्राओं को इतनी स्वतंत्रता क्यों दे बैठे   को कैसे नहीं समझ पाये कि मैं कहाँ इंगित कर रहा हूँ?

आपही बतायें, क्या मुखड़े की आधार पंक्ति की कुल मात्राओं का रचना की अंतराओं की आधार-पंक्ति में निर्वहन हुआ है ?

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 24, 2012 at 12:15am
आदरणीय गुरुवर! सादर चरण स्पर्श
गीत की सराहना हेतु अभिनन्दन एवं धन्यवाद।
एक अज्ञानी बालक के हाथों में पड़कर ज्यों ठीक से ठीक वस्तु भी कबाड़ बन जाती है,वही दशा मेरे द्वारा रचित गीत की है।
किन्तु इसका दो ही निदान है-
1-समय के साथ बच्चे के समझ बढ़ने की प्रतीक्षा किया जाये?
2-उसे उचित प्रबोध दिया जाये।

प्रस्तुत गीत को सुशिल्पबद्ध कैसे किया जा सकता है?आदरणीय गुरुप्रवर श्री सौरभ जी से सादर अपेक्षित है।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2012 at 11:30pm

भाई विंध्येश्वरीजी,  सबसे पहले इस शास्त्रीय गीत के लिये मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.  सनातन किन्तु अत्यंत ही कोमल भाव आपने उकेरे हैं. पंक्ति-पंक्ति लालित्य पूर्ण तथा सहज ही मोहक है. बहुत सुन्दर.  बहुत खूब !

किन्तु, इतनी सुगढ़ भाव दशा को आपने समृद्ध शिल्प नहीं दिया. प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में ढल कर जो भाव दशा किसी पाठक के हृदय प्रांतर के कोने-कोने को समृद्ध कर सकती थी, वह लसर कर रह गयी है. आप पंक्तियों की मात्राओं को इतनी स्वतंत्रता क्यों दे बैठे, भाईजी ?

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