सब जानते हैं
क्या चल रहा है
कैसे चल रहा है
हल भी है
लेकिन चुप है
क्यूंकि इनके दिलों ने
धडकना छोड़ दिया है
वो केवल फड-फडाता है
घुटन पसंद हैं इन्हें
इन्होने सीख लिए है
तिल तिल मरना
जिन्दगी के नाम पे
कडवे घूँट पीना
कडवा घूँट
गरल से कम नहीं है
सभी शिव बनने के लिए
आतुर हैं
आखिर कहाँ से आ रही है
ये सहनशीलता
या ये एक भीरुपना है
जो खा गया है
एक आदमी के स्वाभिमान को
कब तक रहोगे ऐसे
उठो -सोने का नाटक करने वालो
कायर जवानो उठो
क्यूंकि ये जवानो का चरित्र नहीं
क्या रक्त में उबाल ठंडा पड़ गया है
क्या तुम सीखते नहीं
तुमसे आगे जाने की होड़ में
तरुणियाँ क्या क्या कर रहीं है
और तुम बैठे हो
एक कौने में
छुप कर
दहशत से
अरे उठो
अपना अपना नहीं
सबका देखो
देश का देखो
शक्ति संचय करो
बस एक चिंगारी
एक चिंगारी तो उडानी ही होगी
उस महल की ओर
जो बना है केवल कागजों से
जिसमे हर बात
कागजी आधारों पे कही जाती है
चाहे फिर वो आँखों से अश्रु ही बहाना क्यूँ न हो
उठो जवानो
इस उस्नीन्दी से जागो
बुलंद करो एक ही नारा
जय हिंद जय हिंद जय हिंद
संदीप पटेल "दीप"
Comment
प्रिय संदीप जी, वर्तमान परिवेश मे युवाओं की स्थिति पर शानदार रचना रची है आपने वस्तुतः आज ऐसे ही जामवंत-प्रोत्साहन की आवश्यकता है .........बहुत-बहुत बधाई मित्र | संभवतः टाइपिंग की गलती से अश्रु का 'आंशु' टाइप हो गया है जो सुधारने योग्य है | सस्नेह
तुमसे आगे जाने की होड़ में तरुणियाँ क्या क्या कर रही हैं वाह ..वाह ये असुरक्षा की भावना अच्छा लगा पढ़कर चलो आज की पीढ़ी ये तो मान रही हैं की तरुणियाँ भी कम नहीं रही बहुत सुन्दर उम्दा भाव हैं रचना में एक जगह आंसू शब्द आया उसे ठीक कर लें इस सुन्दर रचना के लिए शुभकामनाएं
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