For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धरा लुट गयी तो गगन बेच देंगे

लुटेरे वतन के वतन बेच देंगे
धरा लुट गयी तो गगन बेच देंगे

सजावट बनावट जिसे भा रही हो
कली फूल क्या है चमन बेच देंगे

अगर आँख खोली न अपनी अभी तो
फरेबी कलामो- रमन बेच देंगे

बनाया नहीं गर नया कुंड कोई
बली दे पुजारी हवन बेच देंगे

हटा ली निगाहें अगर झूठ से अब
शहादत निगल के कफ़न बेच देंगे

न दहशत न वहशत मिटेगी कभी भी
जमीं से सियासी अमन बेच देंगे

न फानूश अब तो खुदा भी रहा है
बुझा "दीप" आमिल पवन बेच देंगे

संदीप पटेल "दीप"

Views: 1644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on June 8, 2012 at 10:58pm

संदीप जी वाह !! बहुत खूब बधाई

Comment by Rekha Joshi on June 8, 2012 at 10:04pm

सजावट बनावट जिसे भा रही हो 
कली फूल क्या है चमन बेच देंगे ,badhiya rachna ,badhai 

Comment by आशीष यादव on June 8, 2012 at 7:36pm
वाह, जबरदस्त रचना।
Comment by Albela Khatri on June 8, 2012 at 6:08pm

waah !

behtareen gazal

badhaai ho bhai Sandeep Patel DEEP ji...........

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 8, 2012 at 3:39pm

कसावट भरी गजल भ्रष्ट व्यवस्था,भ्रष्ट आचरण पर

बहुत ही  आक्रामक प्रयोग

गजल में ऐसा प्रयोग बेहतरीन है इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई

Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on June 8, 2012 at 2:15pm

उम्दा गज़ल , बहर का बहुत बढ़िया प्रयोग, ज़बरदस्त गज़ल रचना के लिए आपको बधाई ...........

 

Comment by अरुण कान्त शुक्ला on June 8, 2012 at 2:05pm

एकदम सच कहा है , आपने | मेरी एक कविता है , मई में लिखी थी , पर भूलवश पहले फेसबुक पर डाल दी थी | पूर्व प्रकाशित ओबीओ में नहीं प्रकाशित होता , इसलिए ओबीओ पर नहीं डाली | उसका एक पड़ आपको नजर है ..

हर  चेहरे पर नकाब चिपका हो ,

बड़ा वही जो बिकता हो ,

कितना नाम को रोईये ,

कितना ईमान को रोईये ,

अच्छी रचना के लिए बधाई |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 8, 2012 at 12:53pm

बहुत सुन्दर बात कही. अब बेचने पे आमादा हैं तो कुछ भी असंभव नहीं. बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service