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सांसे जब तक चलती हैं

तब तक चलता है

सुख- दुःख का एहसास 

मान -अपमान की पीडाएं 

उंच -नीच , जात -पात  का भेद

सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन

नहीं मिलने मिलाने के उलाहने

प्रतियोगिता की अंधी दौड़

एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र

सांसे जब तक टूटती हैं

उस क्षण को

ग्लानी से भरता है मन

और छोड़ देता है तन को

बची रह जाती है

उसकी कुछ यादें

अंततः कुछ भी नहीं बचता शेष

और फिर से शुरू हो जाती हैं

ये सारी प्रवंचनाएं

23july2008

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 10:04pm

आदरणीय प्रदीप सर, सादर प्रणाम  .. आपका आशीर्वाद मिल गया , लिखना सार्थक हो गया / स्नेह बनाये रखे

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 10:02pm
आदरणीय योगी जी , कविता आपको पसंद आई , भाव आप सबको  अच्छे लगे . लिखना सार्थक हुआ /
सराहने के लिए आभारी हूँ / सहयोग बनाये रखे  
Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 9:59pm

आदरणीया प्राची जी ..  समय देकर अपना बहुमूल्य विस्तृत प्रतिक्रिया दिया, सराहा , उत्साहवर्धन किया , उसके लिए ह्रदय से आभारी हूँ , स्नेह बनाये रखे , धन्यवाद  

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 9:51pm

संदीप जी व् अरुणेन्द्र जी .. आप दोनों को धन्यवाद / सहयोग बनाये रखे

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 9:49pm

आदरणीया राजेश दी .. आपका हार्दिक आभार

Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 7:18pm

mahima ji ,

सांसे जब तक टूटती हैं

उस क्षण को

ग्लानी से भरता है मन

और छोड़ देता है तन कोsundr bhaav ,badhai 

Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 4:57pm
महिमा जी ,
सांसे जब तक चलती हैं

तब तक चलता है

सुख- दुःख का एहसास

मान -अपमान की पीडाएं

उंच -नीच , जात -पात का भेद
जीवन के सत्य का अच्छा बखान किया है आपने

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2012 at 4:33pm

बहुत खूब !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 4, 2012 at 4:15pm

स्नेही महिमा जी, शुभाशीष 

जीवन का निचोड़ चंद पंक्तियाँ में. 

जीते रहो. बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on June 4, 2012 at 4:03pm

सांसे जब तक चलती हैं

तब तक चलता है

सुख- दुःख का एहसास 

मान -अपमान की पीडाएं 

उंच -नीच , जात -पात  का भेद

सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन

नहीं मिलने मिलाने के उलाहने

प्रतियोगिता की अंधी दौड़

एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र

आदरणीय महिमा जी , सादर नमस्कार ! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ दी हैं आपने ! इंसान जब तक जिन्दा है , ना जाने कैसे कैसे प्रपंच करता है , सांसें बंद तो सब कुछ बंद ! बेहतरीन प्रस्तुति

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