For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो कवितायेँ किसान भाईयों के लिए

किसान भाईयों के लिए जो निरंतर आत्महत्याओं के लियें विवश हो रहे हैं ...
.
१.मैं किसान हूँ  
मैं बोता हूँ
गन्ने , चावल , आलू
सब्जियां और ना जाने
कितनी फसलें
खोदता हूँ मिटटी
प्यार से रोपता हूँ
देता हूँ स्नेह
इंच दर इंच बढ़ना
 रोज ताकता हूँ
और नाच उठता हूँ
बढ़ता देख
गाता हूँ ख़ुशी के गीत
रात भर जगता हूँ
करता हूँ पहरेदारी
कोई देना उसे तकलीफ
उखाड़ ना दें कोई उसे
जड़ो से
पर मिलता हैं उसके बदले
मुठी भर रूपये
गरीबी , जहालत
लेनदारो का कर्ज  
पत्नी की आँखों में दर्द
बच्चो का भूखे बिलबिलाना
बैलो का चारे बिना
तड़प तड़प के मर जाना
क्योंकि बोरी भर फसलें मेरी
बिक जाती हैं मिटटी के मोल
ठगा सा मैं खड़ा 
देखता हूँ आकाश को 
जेठ की धुप
क्या जलाएगी 
अब तो तिल तिल   मर रहा हूँ
गले में कसी
कर्ज की हुक से ....
 
.
ये परजीवी    ( खुदगर्ज   समाज को परजीवी संबोधित किया है )
 
ये जिन्दा रहें
फले फूलें
हँसे मुस्कुराएँ
नाचे गायें 
इसके लिए
उन्हें देता हूँ
भूखे रह कर भी 
अमृत रूपी अन्न
नाना प्रकार के सुस्वाद का
करता हूँ इंतजाम 
ये सुंदर लगे 
सजे सवरें
घर को भी
सुसज्जित करें
इसलिए नंगा रह कर भी
उपजाता हूँ कपास
आंधी -पानी हो
या कड़ी धूप
अथक डटा रहता हूँ 
ताकि ये
निरंतर बढते रहें
सुखी रहें
पर इनकी भूख 
सुरसा की तरह बढती ही जाती है
और एक दिन
मैं भी हो जाता हूँ
इनका ग्रास ....
  
 
 
 

Views: 838

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sonam Saini on July 3, 2012 at 1:11pm

Very well written Mahima ji............. sidhe dil se dil tak pahuchne wali rachna

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:06pm

आदरणीय अशोक सर , सराहने के लिए आपकी आभारी हूँ / आपकी चिंता भी वाजिब है . जिस तरह से दुसित सब्जियों , फलों और अन्य खाद्य पदार्थो का चलन बढ़ा है उससे आक्रोस भी होता है / पर ये काम संपन्न किसान या कहे जमीदार टाइप के किसान की हैं जो उपभोक्तावाद और बाजारवाद के प्रभाव में आकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं और इसलिए जहरीले कीट नाशको का प्रयोग करते हैं .. पर यंहा मैंने उस गरीब किसानो की बात की है जिनके पास खेत तो हैं पर पैसे नहीं है कुछ भी उपजाने को / 

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 2, 2012 at 7:10am

महिमा जी
          सादर, दोनों ही बहुत सुन्दर रचनाएं, बिचौलीयों के कारण किसानो की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है. किन्तु आपकी रचना की पंक्ति इंच दर इंच बढ़ता देखता हूँ बरबस ही इंजेक्शन द्वारा फल और सब्जियों को विषैला करने की घ्रणित घटनाओं का स्मरण करा देती हैं.

Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 9:21pm

ओह तब तो आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है ... अपने जिए गए अनुभव से कुछ आप भी लिखिए अरुण जी .

आपका लिखा हर लिहाज से बेहतर होगा ..

Comment by Arun Sri on May 31, 2012 at 9:08pm

आपका प्रयास सफल रहा महिमा जी ! मैं खुद भी किसान परिवार से हूँ ! हर दर्द को महसूस किया है मैंने उसे जिया है ! काश कि सरकार भी सोच पाती आपके कवि ह्रदय की तरह !

Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 9:05pm

पसंद करने के लिए धन्यवाद हिमांशु पटेल जी

Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 9:03pm
अरुण जी नमस्कार ,
आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहता है / यदा कदा समाचार पत्रों के किसी कोने में किसानो की आत्महत्या की खबरे हिला कर रख देती है / पांच सालो में ढाई लाख किसानो ने आत्महत्या की है /
राष्ट्रिय नमूना सर्वेक्षण कहती है हमारे देश का हर दूसरा किसान कर्जदार है / आंध्र प्रदेश , तमिलनाडु , पंजाब , केरल , कर्णाटक और महाराष्ट्र में ये संख्या प्रतिशत के हिसाब से सबसे ज्यादा हैं / जबकि एनी राज्यों के तुलना में ये राज्य ज्यादा संपन्न हैं / स्पस्ट है की किसानो के लिए इन सरकारों की नीतियाँ जिमेवार है ..अपने  मुनाफे के लिए गलत नीतियाँ लागु की गयी है जिसके कारण वो लाचार हो जाता है  /
सराहने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद / मेरा यही प्रयास था की आप सबका अन्न देवता की तकलीफों पे भी आप सब का ध्यान जाए / सधन्यवाद
   
Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 8:41pm

परमआदरणीय योगराज सर , सादर नमस्कार .

 अपनी वयस्त जीवनचर्या में से समय निकाल कर मेरी रचनाओ को आपने पढ़ा और मेरा उत्साहवर्धन किया , इसके लिए कितना भी कहू कम है सर . आपने पढ़ा लिखना सार्थक हुआ / हार्दिक धन्यवाद / सभार ..स्नेह बनाए रखे /

Comment by Arun Sri on May 31, 2012 at 8:39pm

आपकी बाकी रचनाओं से हटकर लेकिन उतनी ही सशक्त !
व्यक्तिगत अध्यात्म और सामाजिक हर विषय पर कमाल की पकड़ है आपकी !
बहुत सुन्दर और  सार्थक रचना के बधाई और इस विषय पर लिखने के लिए अभिनन्दन !

Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 8:36pm

आदरणीय सौरभ सर .. सादर नमस्कार

आपसे उत्साह भरा अनुमोदन अपेक्षित था / मैं आप दोनों गुरुजनो से अपने वर्तनी  सम्बंधित त्रुटियों के लिए  क्षमाप्रार्थी  हूँ / हमेशा मुझसे त्रुटी रह जाती है / आपकी हार्दिक आभारी हूँ / सधन्यवाद /

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Thursday
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Wednesday
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Wednesday
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
Oct 31
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service