For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निजत्व की खातिर

निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा इन्सान
कौन है ईश्वर
जीवन क्या है
मै कौन हूँ
क्यूँ आया हूँ
जिज्ञासायों के कई भंवर हैं
डूब के इनमे
अपनों से कब तक
मुख मोड़ सकेगा इन्सान

Views: 1280

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on March 16, 2012 at 2:22pm
वाहिद जी नमस्कार ,सादर आभार आपका सराहना और उत्साहवर्धन के लिए
के लिए
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 16, 2012 at 1:47pm

जिज्ञासायों के कई भंवर हैं
डूब के इनमे
अपनों से कब तक
मुख मोड़ सकेगा इन्सान

स्नेही महिमा जी. बहुत खूब, बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 16, 2012 at 11:56am

यथार्थपरक कविता महिमा जी| जीवन की विषमताओं का सटीक चित्रण| आपकी कविताएँ सदैव ही कुछ नए विषयों से रूबरू कराती हैं| हार्दिक आभार आपका,

Comment by MAHIMA SHREE on March 16, 2012 at 11:38am
अश्विनी जी नमस्कार ..
आपका बहुत-२ धन्यवाद्
Comment by MAHIMA SHREE on March 16, 2012 at 11:33am
विंदेश्वरी भाई आपका हार्दिक आभार ..जॅहा तक भंवर में छोड़ने है
की बात है तो आप भी जानते है ..पूरा जीवन भी निकल जाये तब भी प्रकृति के रहस्यों का सटीक उत्तर मिलना और संतुष्ट होना थोडा मुस्किल सा है...
Comment by MAHIMA SHREE on March 16, 2012 at 11:11am
राकेश जी ....आपसे सहमत हू...धन्यवाद आपका
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 10:01pm
ऐसी ही कुछ जिज्ञासायें मेरी हाइकू रचना 'जीवन के सत्य' में भी उठी हैं।जिस पर मैं आजतक निरूत्तर हूं।आपने भी भंवर में छोड़ दिया,छोटे भाई पर कुछ तो रहम करतीं बहन।
Comment by अश्विनी कुमार on March 15, 2012 at 9:52pm

यथार्थ का अति सुंदर चित्रण ........

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 9:51pm
कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टिकोण से अच्छी रचना है।आपको भूरि-भूरि बधाई।
जिज्ञासायों मे टंकण दोष है।
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 15, 2012 at 9:23pm

निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान.... Bahut sundar, khas kar palayan vadi logo ke liye jinhe lagta hai ki Mumbai dilli me sab acha hai aur UP bihaar me sab bura.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
5 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service