For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निजत्व की खातिर

निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा इन्सान
कौन है ईश्वर
जीवन क्या है
मै कौन हूँ
क्यूँ आया हूँ
जिज्ञासायों के कई भंवर हैं
डूब के इनमे
अपनों से कब तक
मुख मोड़ सकेगा इन्सान

Views: 1272

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mukesh Kumar Saxena on April 8, 2012 at 5:47pm
Jis ne nijatv ko jan liya vo jag se juda ho jaate hai.
Jisne khud ko pahichan liya vo log khuda ho jaate hai. Khudi se hi khudai hai . Pl read my spiritual article in dharmic. Gp. Apki rachna vahut achchhi hai. Badhai sweekar kare.
Comment by MAHIMA SHREE on April 8, 2012 at 5:34pm
आदरणीय श्याम बिहारी जी   ,
नमस्कार ,  स्वागत है , कोटिश  धन्यवाद , ..  
Comment by MAHIMA SHREE on April 8, 2012 at 5:33pm
आदरणीय जवाहर सर ,
नमस्कार , धन्यवाद , स्नेह बनाये रखे..  
Comment by Shyam Bihari Shyamal on April 8, 2012 at 7:06am

वाह.. जीवंत रचना... बधाई..

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 7, 2012 at 8:08pm

आदरणीया महिमा श्री जी..

बेहतरीन और शानदार प्रस्तुति...महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना हेतु चयनित होने पर आपको कोटिशः बधाइयाँ

Comment by MAHIMA SHREE on April 6, 2012 at 11:14am
आदरणीय अविनाश जी,
सादर नमस्कार ,
आपको मेरा हार्दिक धन्यवाद , आपने पढ़ा , सराहा, उत्साह वर्धन किया...आभारी हूँ..
Comment by AVINASH S BAGDE on April 6, 2012 at 10:08am

कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं 
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं............................बहुत ही उम्दा.
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान....वाह!
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान........सटीक आशंका.
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है................सत्य-वचन.
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा इन्सान
कौन है ईश्वर
जीवन क्या है
मै कौन हूँ
क्यूँ आया हूँ
जिज्ञासायों के कई भंवर हैं..........अनगिनत...असंख्य......अनंत...
डूब के इनमे
अपनों से कब तक
मुख मोड़ सकेगा इन्सान....महिमा श्री जी.....पहले तो आपको बधाई...माह का सर्वश्रेष्ठ होने के लिये साथ ही इतनी विचार-श्रेष्ठ   रचना हेतु साधुवाद .........कुल मिला कर लाजवाब.

Comment by MAHIMA SHREE on April 5, 2012 at 9:30pm

आदरणीय मयंक सर,

नमस्कार , आपका बहुत -२ हार्दिक धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on April 5, 2012 at 9:28pm
 आदरणीय सौरभ सर,
सादर प्रणाम , आप सब गुणीजनों का प्रोत्साहन और आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहा ..तो भविष्य में भी जरुर अच्छा करने का उत्साह  रहेगा ,  सचमें आज आप सबो के आशीर्वचनो से मेरा ह्रदय आह्लादित हो रहा है...स्नेह बनाये रखे..    
 
Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 9:07pm

आदरणीया महिमा श्री जी..

बेहतरीन और शानदार प्रस्तुति...महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना हेतु चयनित होने पर आपको कोटिशः बधाइयाँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service