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हम अब नहीं फंसने वाले (कविता )

क्यों आज तुम्हे अब चैन नहीं है महलों में?,

लाखों के बिस्तर पर भी नींद नहीं आती?
क्यों घूम रहे हो आज मध्य तुम जनता के,
क्यों आज बार की परियां तुम्हे नहीं भातीं?


वो पांच सितारा होटल, जहाँ ठहरते थे,
क्या भूल गए सचमुच उसके ऐश-ओ-अराम?
क्यों आँखे चढ़ी हुई औ' माथा सिकुड़ा है?
क्या हुआ? हो गयी हैं आज नींदें हराम!


हे! आज हमारा ध्यान हुआ किस कारण से?
किस कारण फिर याद आई भोली जनता?
क्यों उतरे तुम्हरे पद मखमली कलीनों से?
क्यों फिर से तड़पाई माँ धरती की ममता?


जब पाँच सितारा होटल में तुम खाते हो,
तब भूख उगती  है गलियों बाज़ारों में|
जब प्यालों में भर भर के जाम छलकाते हो,
तब बेकारी ढुढती है कफ़न मजारों में|


जो रात-दिन  मेहनत कर अन्न उगाता है,
सुधि लिए कभी, आखिर वो क्यों मर जाता है?
क्यों जीने की उसकी इच्छा भी रह जाती?
क्यों इस दुनिया से मन उसका भर जाता है?


जिस रोज पार करते हो हद अय्यासी की,
उस रोज एक इज्जत फिर से लुट जाती है
जिस तुलसी की पूजा घर-घर में होती है
उस तुलसी की तो साँसे ही छुट जाती हैं|


हो चुका बहुत अब खेला बुतों पत्थरों का
ये आँख मिचौली जनता ना सहने वाली,
औकात दिखा कर छोड़ेगी, ओ बेशर्मो!
अब बस वादों पर ये ना चुप रहने वाली|


तुम चम्चे हो उनके! जो कैद जेलों में है?
और वोट माँगने आये, शर्म नहीं आई?
जो खूनी कातिल और माफिया गुंडा हैं,
तुम छोडो उनका साथ, सम्हल जाओ भाई|


ashish yadav

Views: 972

Comment

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Comment by Brij bhushan choubey on January 24, 2012 at 4:54pm

vah kya bat kah gaye ho yar ....damdar ...rachan  khij or khilli nikalata hua bahut badhiya .

Comment by Neelam Upadhyaya on January 24, 2012 at 4:36pm

आज हमारा ध्यान हुआ किस कारण से?

किस कारण फिर याद आई भोली जनता?
क्यों उतरे तुम्हरे पद मखमली कलीनों से?
क्यों फिर से तड़पाई माँ धरती की ममता?
 
बहुत ही उम्दा और वास्तविकता से भरपूर रचना है. बधाई स्वीकार करे.
Comment by Deepak Sharma Kuluvi on January 24, 2012 at 4:28pm

SUNDAR SHABDON KA SHABDJAAL........ACHHA LAGA...

Comment by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:38pm

आदरणीय  श्री राणा प्रताप जी, आपको ये कविता अच्छी लगी मै धन्य हुआ.

आप लोग बस यूँ ही अपना प्यार देते रहेंगे तो मै कुछ और भी लिख सकूँगा|
धन्यवाद एवं आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 24, 2012 at 3:29pm

आशीष जी,....आपकी ज़रखेज़ कलम को सलाम है  हम सबके आक्रोश को आपने एक आवाज दे दी है कि "चेत जाओ वरना महँगा पडेगा"...आपकी लेखनी कि धार उभर कर सामने आई है इस कविता में...इसे यूँ ही बनाए रखें|

Comment by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:21pm

guru ji, dhanyawaad.

Comment by Rash Bihari Ravi on January 24, 2012 at 3:13pm

तुम चम्चे हो उनके! जो कैद जेलों में है?
और वोट माँगने आये, शर्म नहीं आई?
जो खूनी कातिल और माफिया गुंडा हैं,
तुम छोडो उनका साथ, सम्हल जाओ भाई

jai ho bhai

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