For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम अब नहीं फंसने वाले (कविता )

क्यों आज तुम्हे अब चैन नहीं है महलों में?,

लाखों के बिस्तर पर भी नींद नहीं आती?
क्यों घूम रहे हो आज मध्य तुम जनता के,
क्यों आज बार की परियां तुम्हे नहीं भातीं?


वो पांच सितारा होटल, जहाँ ठहरते थे,
क्या भूल गए सचमुच उसके ऐश-ओ-अराम?
क्यों आँखे चढ़ी हुई औ' माथा सिकुड़ा है?
क्या हुआ? हो गयी हैं आज नींदें हराम!


हे! आज हमारा ध्यान हुआ किस कारण से?
किस कारण फिर याद आई भोली जनता?
क्यों उतरे तुम्हरे पद मखमली कलीनों से?
क्यों फिर से तड़पाई माँ धरती की ममता?


जब पाँच सितारा होटल में तुम खाते हो,
तब भूख उगती  है गलियों बाज़ारों में|
जब प्यालों में भर भर के जाम छलकाते हो,
तब बेकारी ढुढती है कफ़न मजारों में|


जो रात-दिन  मेहनत कर अन्न उगाता है,
सुधि लिए कभी, आखिर वो क्यों मर जाता है?
क्यों जीने की उसकी इच्छा भी रह जाती?
क्यों इस दुनिया से मन उसका भर जाता है?


जिस रोज पार करते हो हद अय्यासी की,
उस रोज एक इज्जत फिर से लुट जाती है
जिस तुलसी की पूजा घर-घर में होती है
उस तुलसी की तो साँसे ही छुट जाती हैं|


हो चुका बहुत अब खेला बुतों पत्थरों का
ये आँख मिचौली जनता ना सहने वाली,
औकात दिखा कर छोड़ेगी, ओ बेशर्मो!
अब बस वादों पर ये ना चुप रहने वाली|


तुम चम्चे हो उनके! जो कैद जेलों में है?
और वोट माँगने आये, शर्म नहीं आई?
जो खूनी कातिल और माफिया गुंडा हैं,
तुम छोडो उनका साथ, सम्हल जाओ भाई|


ashish yadav

Views: 1034

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Brij bhushan choubey on January 24, 2012 at 4:54pm

vah kya bat kah gaye ho yar ....damdar ...rachan  khij or khilli nikalata hua bahut badhiya .

Comment by Neelam Upadhyaya on January 24, 2012 at 4:36pm

आज हमारा ध्यान हुआ किस कारण से?

किस कारण फिर याद आई भोली जनता?
क्यों उतरे तुम्हरे पद मखमली कलीनों से?
क्यों फिर से तड़पाई माँ धरती की ममता?
 
बहुत ही उम्दा और वास्तविकता से भरपूर रचना है. बधाई स्वीकार करे.
Comment by Deepak Sharma Kuluvi on January 24, 2012 at 4:28pm

SUNDAR SHABDON KA SHABDJAAL........ACHHA LAGA...

Comment by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:38pm

आदरणीय  श्री राणा प्रताप जी, आपको ये कविता अच्छी लगी मै धन्य हुआ.

आप लोग बस यूँ ही अपना प्यार देते रहेंगे तो मै कुछ और भी लिख सकूँगा|
धन्यवाद एवं आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 24, 2012 at 3:29pm

आशीष जी,....आपकी ज़रखेज़ कलम को सलाम है  हम सबके आक्रोश को आपने एक आवाज दे दी है कि "चेत जाओ वरना महँगा पडेगा"...आपकी लेखनी कि धार उभर कर सामने आई है इस कविता में...इसे यूँ ही बनाए रखें|

Comment by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:21pm

guru ji, dhanyawaad.

Comment by Rash Bihari Ravi on January 24, 2012 at 3:13pm

तुम चम्चे हो उनके! जो कैद जेलों में है?
और वोट माँगने आये, शर्म नहीं आई?
जो खूनी कातिल और माफिया गुंडा हैं,
तुम छोडो उनका साथ, सम्हल जाओ भाई

jai ho bhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service