For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कसौटी जिन्दगी की .. (छंद - हरिगीतिका)

यह सत्य निज अन्तःकरण का सत्त्व भासित ज्ञान है

मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है

जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?
इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से    ||1||


अब नीतियाँ चाहे कहें जो, सच मगर है एक ही  
जब तक न हो मन स्वच्छ-निर्मल, दिग्भ्रमित है मन वही

रंगीन जल है ’क्लेष’ मन का, ’काम भी जल पात्र का

परिशुद्ध जल से पात्र भरना कर्म हो जन मात्र का ||2||

 

जिससे सधे उद्विग्न मन वह ’संतुलन’ का ज्ञान है

फिर, सुख मिले या दुख मिले, हो शांत मन, कल्याण है  
जन साध ले मन ’संतुलन’ में, निष्ठ हो, शुभता रसे
मन-पात्र दूषित जलभरा तो हीनता, लघुता बसे   ||3||

 

भटकाव के  प्रारूप दो ही क्लिष्ट और अक्लिष्ट हैं
छूटे न यदि भटकन सहज ही, मानिये वे क्लिष्ट हैं 

जनहित परम हो लक्ष्य जिनका, चित्त से उत्कृष्ट हैं
जिनमें समर्पण तपस के प्रति, जन सभी वे शिष्ट हैं ||4||

प्रति पल परीक्षित आदमी है, साधना हरक्षण चले
यह ताप ही तप साधता है, दिव्य हो तन-मन खिले

उन्नत तपस से शुद्ध हो मन,   भक्ति है, उद्धार है
भव-मुक्ति है, आनन्द है, शुभ  प्रेम का संसार है   ||5||

*****************************

-- सौरभ

 

(ध्यातव्य : छंद की पंक्तियों के प्रयुक्त सभी कोमा वाक्यानुसार है नकि यति के लिहाज से. किन्तु, वाचन-क्रम में पंक्तियों में यति का आभास स्वयमेव हो जायेगा.)

Views: 1821

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 20, 2011 at 5:19pm

वाह वाह वाह - मन झूम उठा इस रचनायों  को पढ़कर, सनातनी छंदों में जो मिठास और सुगंध है उसका पूरा पूरा आभास इन्हें पढ़कर हो रहा है ! शिल्प की दृष्टि से निर्दोष एवं कथ्य की दृष्टि से अति उत्तम इन हरिगीतिका छंदों के लिए मेरा सादर साधुवाद स्वीकार करें आदरणीय सौरभ भाई जी !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 3:58pm

//जिससे सधे उद्विग्न मन वह ’संतुलन’ का ज्ञान है

फिर, सुख मिले या दुख मिले, हो शांत मन, कल्याण है  
जन साध ले मन ’संतुलन’ में, निष्ठ हो, शुभता रसे
मन-पात्र दूषित जलभरा तो हीनता, लघुता बसे   ||3||//

आदरणीय सौरभ जी आप द्वारा रचे गये उपरोक्त समस्त हरिगीतिका छंद अपने आप में अद्वितीय हैं ! इस हेतु आपकी लेखन प्रतिभा को नमन ! शत-शत बधाई मित्र !

Comment by Aradhana on October 8, 2011 at 7:17pm

आपके उत्साह भरे स्वागत के लिए दिल से धन्यवाद सौरभ जी, यहीं कहीं थे बस..
परम आनंद मार्ग सुगम नही है, बिल्कुल सही. पर कई बार हम सब वहाँ होते हुए भी महसूस नही कर पाते कि हम सुख की उस चरम सीमा पर हैं. वहाँ तक पहुँचना जितना दुर्गम है उसे पहचानना उस से भी कठिन...
लिखते रहिए...शांति है आपके शब्दों में.
सादर,
आराधना


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 8, 2011 at 6:38pm

आराधनाजी, सर्वप्रथम स्वागत है आपका. कहाँ थे भाई?

 

//इतनी अपेक्षाएँ मानव से कहाँ तक सही हैं?//

इन पंक्तियों में किसी व्यक्ति या जन से कोई अपेक्षा है ही नहीं,  बल्कि वास्तविक, सोद्येश्य और साध्य जीवन का जरिया बताया गया है, जिसका अनुसरण किसी मानव को मानव-व्यक्तित्व के अन्नमय कोष के सतहीपन से उठा कर सर्वोच्च आनन्दमय कोष की व्यापकता तक पहुँचा देता है.  वहीं सुख है.. चरम-सुख है.. आनन्द है.. परम-आनन्द है.  यह परम-आनन्द ही मानव-जीवन का अंतिम लक्ष्य है. मानव के मन को (चित्त को) वृतियाँ कई तरह से प्रभावित करती हैं. उनका शोधन ही ’तपस’ है. इसको साधनेवाला ही मुक्त जीवन जीता है. इस मुक्त-जीवन से ही उत्फुल्ल प्रेम संभव है जिसमें कोई बन्धन नहीं होता. किन्तु, बिना अनुशासित जीवन के स्वतंत्र क्षणों को समझा भी नहीं जा सकता.

इस पूरी पक्रिया को अष्टांग योग के यम और नियम के अंतर्गत विधिवत बताया गया है.

Comment by Aradhana on October 8, 2011 at 6:12pm

आदरणीय सौरभ जी,
कई बार आपकी कविता पढ़ी. बहुत सुंदर!! पर इतनी अपेक्षाएँ मानव से कहाँ तक सही हैं? 
सादर,
आराधना


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 8, 2011 at 5:30pm

सियाजी, इस रचना को आपने मान दिया है, आपका कोटिशः आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 8, 2011 at 5:29pm

आदरणीय अम्बरीषजी, छंदों पर आपकी हौसला अफ़ज़ाई मेरे लिये अमूल्य पुरस्कार है.आपको रचना पसंद आयी मेरा प्रयास सार्थक हुआ.  हम आपके सहयोग के आकांक्षी हैं.  सादर.

Comment by siyasachdev on October 8, 2011 at 11:38am

आपकी लेखनी को नमन,राह दिखाती प्रत्येक क्षण कि महत्ता बताती रचना...

 बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें

 

 

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 7, 2011 at 9:48am

मधु छंद यह हरिगीतिका, तप साधना आधार है,
निज को कसौटी पर कसा, तब छंद यह साकार है,
हो लक्ष्य अंतस साधना, आराधना स्वीकार है,
प्रभु आपने यह सब रचा, हम पर बड़ा उपकार है..
सादर:


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2011 at 9:19pm

प्रिय भाई अभिनवजी, रचनाओं पर आपकी दृष्टि उस रचनाकार को उत्साह से भर देता है. छंद पर नया-नया हाथ चला रहा हूँ. आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे बहुत उत्साहित किया है.

सधन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service