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दोहा पंचक. . . . कागज

दोहा पंचक. . . कागज

कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।
तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।

कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।
कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।

कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।
रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।

कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।
हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।

कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।
कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।

सुशील सरना / 3-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:55pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं सर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2025 at 12:38pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2024 at 9:38pm
आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने उल्लेख किया है वो इस अल्पज्ञानी बता दिया होता तो बन्दा आपका आभारी होता । सादर नमन
Comment by Chetan Prakash on December 16, 2024 at 1:25pm
बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे सदैव एक अपेक्षा रहती है कि आप स्वयं, बंधुवर, रचना को थोड़ा और समय दें। भरती के शब्द आपकी रचनाओं, खेद है, अपेक्षाकृत अधिक पाए जाते हैं! यथा, ' तो' पहला दोहा, विषम चरण । शब्द का दोहराव भी एक समस्या है

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