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कुंडलिया. . . . 

बच्चे अन्तर्जाल पर , भटक  रहे  हैं  आज ।
दुर्व्यसन   में   भूलते, जीवन  की  परवाज ।
जीवन की परवाज , लक्ष्य यह भूले अपना ।
बिना कर्म यह अर्थ , प्राप्ति का देखें सपना ।
जीवन   से  अंजान, उम्र  से  हैं  यह  कच्चे ।
आज  नशे   में   चूर , भटकते  देखे   बच्चे ।

सुशील सरना / 8-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on December 14, 2024 at 5:33pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं टंकण त्रुटि संशोधित ।हार्दिक आभार 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 13, 2024 at 3:22pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई। 

  • दुर्वयस्न को दुर्व्यसन कर लें। सादर

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